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सोमवार, 20 जनवरी 2014

shatpadi: sanjiv

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षट्पदी :
संजीव 
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सु मन कु मन से दूर रह, रचता मनहर काव्य
झाड़ू मन हर कर कहे,  निर्मलता संभाव्य
निर्मलता संभाव्य, सुमन से बगिया शोभित
पा सुगंध सब जग, होता है बरबस मोहित
कहे 'सलिल' श्रम सीकर से जो करे आचमन
उसकी जीवन बगिया में हों सुमन ही सुमन
*

आशा बिन सूना लगे, सलिल सभी संसार
जो निराश वह कह रहा, है संसार असार
शक-सेना को हराकर, खुद पर कर विश्वास
सक्सेना की पूर्ण हो, कोशिश से हर आस
स्वागत करती नेह-नर्मदा नित प्रवाहित हो
कविता सार्थक तभी लिखी जब सबके हित हो।

facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil' 

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