एक कविता:
बाज
संजीव
*
अगर नाप सको
नीले गगन की ऊँचाई
बेधड़क-बेखौफ।
चप्पे-चप्पे पर
रख सको नज़र।
सामर्थ्य और औकात का
कर सको
सही-सही अंदाज़।
बिना बनाये नहाना
तलाश कर लक्ष्य
साध सको निशाना।
पल में भर सको
इतनी तेज परवाज़
कि पीछे रह जाए आवाज़।
तभी,
केवल तभी
पूरा कर सकोगे काज
ज़मानी को होगा तुम पर नाज़
आदमी होते हुए भी
कहला सकोगे बाज़।
***
बाज
संजीव
*
अगर नाप सको
नीले गगन की ऊँचाई
बेधड़क-बेखौफ।
चप्पे-चप्पे पर
रख सको नज़र।
सामर्थ्य और औकात का
कर सको
सही-सही अंदाज़।
बिना बनाये नहाना
तलाश कर लक्ष्य
साध सको निशाना।
पल में भर सको
इतनी तेज परवाज़
कि पीछे रह जाए आवाज़।
तभी,
केवल तभी
पूरा कर सकोगे काज
ज़मानी को होगा तुम पर नाज़
आदमी होते हुए भी
कहला सकोगे बाज़।
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