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गुरुवार, 9 जनवरी 2014

kavita: geedh -sanjiv

काव्य सलिला:
गीध
संजीव
*
जब स्वार्थ-साधन,
लोभ-लालच,
सत्ता और सुविधा तक
सीमित रह जाए
नाक की सीध
तब समझ लो आदमी
इंसान नहीं रह गया
बन गया है गीध.

***

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