hindi chhand salila

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गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

hindi chhand : Rola

"विधा विशेष ---
===========
समर्थ छंद रोला :

  • सुरेन्द्र नवल



    रोला एक सम मात्रिक छंद है जिसमें चार दल (पद) होते हैं... प्रत्येक पद/दल (पंक्ति) में 11,13 मात्राओं के साथ सम चरण में तुकांत होना चाहिए... चार पंक्तियों (दलों) वाले इस सम मात्रिक छंद की प्रत्येक पंक्ति (दल) में दो चरण होते हैं जिनमें 11 और 13 मात्राओं पर यति का प्रयोग होता है... इस छंद के विषम चरणों में 11-11 मात्राओं के साथ अंत में गुरु+लघु यानी 21 या तीन लघु यानी 111 आने अपेक्षित है... रोला छंद के सम चरणों में 13-13 मात्राएं होती हैं जिनके अंत में दो गुरु यानी 22 या लघु+लघु+गुरु यानी 112 या चार लघु यानी 1111 आने अपेक्षित है... अधिकाँश विद्वानों का मत है कि रोला छंद के सम चरणों के अंत में दो गुरु 22 ही होने चाहिए लेकिन इसके विरोध में छंद प्रेमी बहुत से प्रमाण भी रखते हैं... यानी अगर सम चरणों में तुकांत साथ अंत में दो गुरु हो तो यह सर्वमान्य है... लय को बनाये रखने के लिए इस छंद की किसी भी पंक्ति (दल) का प्रारम्भ जगण यानी 121 से नहीं होना चाहिए...

    वैसे तो किसी भी छंद को जब काव्यात्मक शब्द विन्यास दिया जाता है तो लयात्मकता स्वतः ही छंद के लक्षणों के अनुसार आ जाती है लेकिन इसके लिए काफी अभ्यास की आवश्यकता होती है इसलिए इसे और सरल करने के लिए इस छंद की लयात्मकता को बताने की आवश्यकता प्रतीत होती है... इस छंद को प्रभावी और प्रवाहमयी बनाने के लिए इसके चरणों में एक निश्चित आंतरिक लय का होना आवश्यक है... यह आंतरिक लय प्रत्येक चरण की कुल मात्रा को अलग अलग घटकों में विभक्त करके बनायी गई है अगर इन घटकों के अनुसार शब्द संयोजन करते हुए छंद रचेंगे तो हर चरण को उत्तम प्रवाह मिलेगा... अगर हम इसमें आंतरिक मात्रिक घटकों का पालन करें तो इस छंद में लय स्वतः और सहज ही आ जायेगी... रोला छंद के सम और विषम चरणों में सुन्दर लय लाने के लिए मात्रिक घटकों का विन्यास इस प्रकार है...

    विषम चरण : 443/3323
    सम चरण : 3244/32332

    इसलिए शब्द संयोजन करते समय शब्दों का चयन इस प्रकार से होना चाहिए कि सम/विषम चरणों में उपरोक्त मात्रिक विन्यास आये... अगर एक साथ एक ही श्रेणी में दो लघु आते हैं तो उनका मात्रिक भार 11 या 2 लिया जा सकता है... ऐसे ही अगर तीन लघु एक ही कतार में आते हैं तो उनको 111/21/12 लिया जा सकता है... लेकिन चरणान्त में दो लघु को गुरु मानने की सुविधा से बचें क्योंकि यह तुकांत योजना के अनुसार उचित नहीं है... उम्मीद करता हूँ कि इस जानकारी के उपरान्त हम सभी इस छंद को और सुन्दर प्रवाह के साथ रच सकते हैं...

    विशेष निवेदन : छंद शास्त्र एक विशाल सागर की तरह है जिसकी गहराई में जितना उतरते जायेंगे उतना ही उसकी बारीकियां जान पायेंगे... उपरोक्त दी गयी जानकारी छंद के बारे में एक प्रारंभिक जानकारी मात्र है... विस्तृत जानकारी इससे आगे भी बहुत है, इसलिए इसे ही सम्पूर्ण जानकारी मानकर किसी प्रकार का विवाद पैदा न करें... यहाँ जो जानकारी दी गयी है वो उन लोगों के लिए दी गयी है जो शिल्पबद्ध सृजन में रुचि तो रखते हैं लेकिन शुरुआत कहाँ से करें इस बारे में अज्ञानता या अपूर्ण जानकारी के कारण प्रयासों को क्रियान्वित नहीं कर पाते हैं... एक अन्य जानकारी उपरोक्त रोला छंद के बारे में यह है कि कृपया इसे दो सोरठा या दोहा का उलट मानकर त्रुटि नहीं करें क्योंकि यह दिखने में थोडा बहुत सही हो सकता है लेकिन इसके अतिरिक्त भी बहुत सी बाते हैं जो इन तीनों छंदों में भेद पैदा करते हैं... इसलिए छंद को समझने के लिहाज से तो ठीक है लेकिन छंद ज्ञान के लिए उपयुक्त नहीं है... अगर ऊपर दी गयी जानकारी में किसी प्रकार का विरोधाभास हो या त्रुटि हो तो क्षमा निवेदन...
प्रस्तुतकर्ता sanjiv verma पर 11:40 pm
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लेबल: hindi chhand, Rola, surrendra naval

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