छंद सलिला:
सुगति (शुभगति) छंद
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रा वज्रा,
उपेन्द्र वज्रा, कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, छवि, दोधक, निधि) प्रेमा, माला, माहिया, वाणी, शक्तिपूजा, शाला, सार, सुजान, हंसी,
संजीव
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सुगति सप्त मात्रिक छंद है. इसके हर चरण में सात मात्राएँ तथा चरणान्त में गुरु मात्रा का विधान होता है.
सात मात्रा, गुरु पदांती। छंद खुश हो, मीत रचिए।
सप्त मात्रिक छंद के २१ भेद हो सकते हैं किन्तु अंत में एक गुरु मात्रा अचल करने पर शेष ५ मात्राओं के विविध संयोजनों से ८ छंद भेद हो सकते हैं जिनकी मात्रा बाँट १. १११११२, २. २१११२, ३. १२११२, ४. ११२१२, ५. १११२२, ६. २१२२, ७. १२२२ तथा ८. २२१२ होती है. इन ८ छंद भेदों को विविध पदों में समायोजित करने से अनेक उप भेद बन सकते हैं.
उदाहरण :
१. हौसलों की राजधानी। नेह की हो बागवानी।।
मिल कहेंगे नित कहानी। कुछ नयी हों कुछ पुरानी।।
भाइयों की निगहबानी। ज़िंदगानी है सुहानी।।
२. तज बहाना, मन लगाना। सफल होना, लक्ष्य पाना।।
जो मिला है, हँस लुटाना। मुस्कुराना, खिलखिलाना।।
३. कवि कहेगी तभी जगती। बात हो जब ह्रदय चुभती।
सत्य झूठा, झूठ सच्चा। सियासत विश्वास ठगती।।
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