मंगल पर जीवन की तलाश % अनुराग
भारत मंगल अभियान के तहत पहली बार अपना
अंतरिक्ष यान मंगल ग्रह की यात्रा पर रवाना कर चुका है। भारत यह अभियान क्यों कर रहा है\ इस पर कितना
खर्च होगा\ क्या यह धन की बर्बादी है\ अभियान के लिये यह समय क्यों चुना
गया\ इसमें कौन&कौन से वैज्ञानिक जुटे हैं\ कैसी है ईन वैज्ञानिकों
की जीवन&शैली और कार्य&पद्धति\ विश्व के अन्य कौन देश ऐसे
अभियान से जुड़े हैं\ अब तक के मंगल अभियानों को कितनी सफलता मिली\ इनका
क्या भविष्य है\ आदि। ऐसे अनेक सवालों के जवाब श्रीनिवास
लक्ष्मण की पुस्तक मंगल बुला रहा है में हैं। पेशे से पत्रकार
श्रीनिवास लक्ष्मण ने पत्रकारिता की शुरुआत वैमानिकी केंद्रित विषयों से
की] फिर अंतरिक्ष अन्वेषण का क्षेत्र चुना है। उन्होंने भारत के प्रथम चंद्र अभियान चंद्रयान के
साथ ही श्रीहरिकोटा से अनेक राकेटों के प्रक्षेपण की रिपोर्टिंग की है। वह सुप्रसिद्ध कार्टूनिस्ट आर- के- लक्ष्मण के
बेटे हैं। मूलत% अंग्रेजी में लिखी इस पुस्तक का हिंदी अनुवाद सुप्रसिद्ध
विज्ञान लेखक देवेंद्र मेवाड़ी ने किया है। श्रीनिवास लक्ष्मण ने मंगल
अभियान के सभी पहलुओं और महत्व को समझने व समझाने के लिये परियोजना
से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण व्यक्तियों से बातचीत की और विभिन्न अंतरिक्ष
केंद्रों में की कार्यपद्धति व तैयारियों को निकट से देखा।
वैज्ञानिक संभावनाएँ व्यक्त कर रहे हैं कि मंगल ग्रह पर कभी जीवन रहा
होगा। आज भी पृथ्वी के अनुकूल मानव के रहने की सबसे अधिक संभावनाएँ मंगल
पर ही व्यक्त की जा रही हैं। इसी का परिणाम है कि 1960 से रूस के पहले
मंगल अभियान से लेकर अब तक 40 से भी अधिक अभियानों के तहत मंगल ग्रह के
अध्ययन के लिए अंतरिक्ष यान भेजे जा चुके हैं। दुर्भाग्य कि
इनमें से 25 अभियान असफल रहे।
यह किताब भारत के अंतरिक्ष अभियान के इतिहास पर भी प्रकाश डालती है। यह
अभियान भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई और भारतीय
नाभिकीय कार्यक्रम के जनक होमी भाभा के सपनों को साकार करने का ही एक
प्रयास है। कोई ढाँचागत व्यवस्था न होने के कारण अंतरिक्ष विभाग के
इंजीनियरों और वैज्ञानिकों ने थुंबा गाँव के छोटे से चर्च और उसके बिशप के
मकान में अंतरिक्ष अनुसंधान कर वहाँ राकेट के
हिस्सों का निर्माण किया। साउंडिंग राकेट के कल&पुर्जे साइकिलों और
कभ&-कभी तो बैलगाड़ी में भी लाये गये थे। भारत का यह अंतरिक्ष
अभियान आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी खास पहचान बना चुका है।
थुंबा से जो प्रथम साउंडिंग राकेट नाइकी अपाचे 21 नवंबर 1963 को छोड़ा गया था] वह नासा ने दिया था। 2013 में जब मंगल अभियान भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम
के प्रथम राकेट के प्रक्षेपण की 50वीं वर्षगाँठ के समय होगा। अभियान से जुड़े कई वैज्ञानिकों के बारे में भी अब तक अनजानी जानकारियाँ
किताब में दी गई हैं। इसरो अध्यक्ष डॉ- के- राधाकृष्णन कर्नाटक शैली के
जानेमाने गायक हैं। वह कथकली कलाकार भी हैं और उन्होंने इसकी मंच पर
प्रस्तुतियां भी दी हैं। इसरो के तिरुअनंतपुरम स्थित भारतीय अंतरिक्ष एवं प्रौद्योगिकी संस्थान
में डीन अनुसंधान डॉक्टर आदिमूर्ति बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। एक रोचक बात यह है कि उन्होंने कार्यालय जाने के लिये कभी गाड़ी का
इस्तेमाल नहीं किया। वह अपने काम पर साइकिल से जाते रहे। उन्हें साइकिल
चलाना पसंद है] इसलिए कार नहीं रखी।
मंगल तक के इस महत्वाकांक्षी अभियान का प्राथमिक उद्देश्य मंगल ग्रह
के वातावरण का और उसके भूगर्भीय अध्ययन करना है। यह मंगल पर मीथेन की
पहेली को भी हल करने की कोशिश करेगा। मीथेन की उपस्थित की पहेली के हल
से ही पता चलेगा कि मंगल पर जीवन मौजूद है या नहीं\ भारतीयों को गर्व होगा कि भारत विश्व में ऐसा पहला देश है जो
सरकार से स्वीकृति मिलने के मात्र एक वर्ष के भीतर मंगल अभियान को
अंजाम दे देगा। अन्य देशों को इन तैयारियों के लिए तीन या चार वर्ष का
समय लगा है। हमारी पृथ्वी से चंद्रमा केवल चार लाख किलोमीटर दूर है। पृथ्वी से कोई
भी सिगनल चंद्रमा तक मात्र 1-3 सेकेंड में भेजा जा सकता है जबकि पृथ्वी
से मंगल तक 40 करोड़ किलोमीटर दूर सिगनल के पहुँचने में 20 मिनट का समय
लगेगा। इसके अलावा चंद्रयान से संबंधित तैयारियाँ करने में चार वर्ष का
समय लगा था] जबकि मंगल अभियान का काम वैज्ञानिक मात्र एक साल में पूरा कर
रहे हैं। पृथ्वी से मंगल तक पहुँचने में करीब 300 दिन लगते हैं। मंगल ग्रह की
कक्षा में अंतरिक्ष यान को प्रवेश कराना अभियान की एक पेचीदा] खतरनाक और
संशय से भरी महत्वपूर्ण अवस्था होती है। इस स्थिति में पहुँच कर अन्य
देशों के कई अभियान असफल हो चुके हैं। इसलिए इस अभियान की तैयारियों
में जुटे वैज्ञानिक बारीक से बारीक चीज पर गहरी नजर रखे हैं।
वैज्ञानिकों का समर्पण इस बात से पता चलता है कि वे चौबीस घंटे तो काम कर
ही रहे हैं] साथ ही अपनी साप्ताहिक छुट्टियों का भी बलिदान कर रहे
हैं। अभियान संपन्न होने पर भारत की प्रौद्योगिकी व वैज्ञानिक दोनों ही
क्षेत्रों में साख बढ़ेगी। जहाँ तक मंगल अभियानों की संभावना का प्रश्न है] तो अंतरिक्ष
अन्वेषण क्षमता वाले अनेक राष्ट्र 2035 के आसपास मंगल तक समानव उड़ान
भेजने का सपना देख रहे हैं। इन प्रयोगों से भविष्य में मंगल ग्रह पर
स्थायी रूप से मानव बस्तियाँ बसायी जा सकेंगी।
संकलित&सम्पादित
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