विरासत:
राष्ट्र होकर उपस्थित होना
बालकवि बैरागी
*
पानी, पहाड़ों और पेड़ों से ही
नहीं पहचाना जाता है देश.
सभ्यता, संस्कृति और संस्कारों से भी
पहचान होती है किसी भू भाग की.
पर इन सभी की अस्मिता को
अभिव्यक्त करती है कोई भाषा।
और वह ही नहीं हो
हमारे पास
तब पानी, पहाड़ों, पेड़ों
सभ्यता, संस्कृति और
संस्कारों को होती है
घनघोर निराशा।
बेशक शब्द होते हैं
भाषा के संवाहक
और लिपि होती है
भाषा की पालकी
पर जब उच्चरित होती है
अस्मिता
तब ज्ञात होता है
क्या हैं हम?
स्वयं एक देश होकर
उच्चरित होना
एक महान देश होकर
उद्भासित होना
औए एक स्वाभिमानी
राष्ट्र होकर उपस्थित होना
अर्थ रखता है
बहुत कुछ.
और जब सार्थकता का सूरज
निकल आये हर दिशा से
तब फिर कौन सा डर है
काली कलूटी निशा से.
समृद्ध शब्द
सार्थक लिपि
और समृद्ध भाषा
हम बनें ही नहीं
बनायें भी
उजले अस्मिता पूर्ण सुरों को
सुनें ही नहीं
सुनाएँ भी.
***
राष्ट्र होकर उपस्थित होना
बालकवि बैरागी
*
पानी, पहाड़ों और पेड़ों से ही
नहीं पहचाना जाता है देश.
सभ्यता, संस्कृति और संस्कारों से भी
पहचान होती है किसी भू भाग की.
पर इन सभी की अस्मिता को
अभिव्यक्त करती है कोई भाषा।
और वह ही नहीं हो
हमारे पास
तब पानी, पहाड़ों, पेड़ों
सभ्यता, संस्कृति और
संस्कारों को होती है
घनघोर निराशा।
बेशक शब्द होते हैं
भाषा के संवाहक
और लिपि होती है
भाषा की पालकी
पर जब उच्चरित होती है
अस्मिता
तब ज्ञात होता है
क्या हैं हम?
स्वयं एक देश होकर
उच्चरित होना
एक महान देश होकर
उद्भासित होना
औए एक स्वाभिमानी
राष्ट्र होकर उपस्थित होना
अर्थ रखता है
बहुत कुछ.
और जब सार्थकता का सूरज
निकल आये हर दिशा से
तब फिर कौन सा डर है
काली कलूटी निशा से.
समृद्ध शब्द
सार्थक लिपि
और समृद्ध भाषा
हम बनें ही नहीं
बनायें भी
उजले अस्मिता पूर्ण सुरों को
सुनें ही नहीं
सुनाएँ भी.
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