बुंदेली लोक जीवन
‘ मामुलिया के आय लिवौया , झमक चली मेरी मामुलिया
लिआव लियाव चंपा चमेली के फूल , सजाओ मेरी मामुलिया ।
ऐसे ही ढिरिया सजाई जात ती। घड़ा के चारों तरफ गोल गोल छेद करके उसके भीतर दीया रखौ जात फिर लड़कियां उसे सिर पर रखकर हर घर जाकर गाना गाकर पैसे मांगती । जैसे ही दो ढिरियां मिल जाती , हमाय गले से अपने आप गीत के बोल निकलने शुरू हो जाते –
‘ ढिरिया में ढिरिया मिल गयी , नारे सुआटा , ढिरिया जन्म्ा की सौत
, सौत पठा दो भइया मायके , नारे सुआटा , हम तुम करहै राज
राज भले भाई बाप के नारे सुआटा , जां ठाड़े तां खेल ,
जरे बरै वौ सासरों नारे सुआटा , जां ठाड़े तां सोच
‘ कांटन के चारों तरफ से फूलेां से सजाकर फिर घर घर जाकर गीत गाती थीं लड़किया
‘ मामुलिया के आय लिवौया , झमक चली मेरी मामुलिया
लिआव लियाव चंपा चमेली के फूल , सजाओ मेरी मामुलिया ।
ऐसे ही ढिरिया सजाई जात ती। घड़ा के चारों तरफ गोल गोल छेद करके उसके भीतर दीया रखौ जात फिर लड़कियां उसे सिर पर रखकर हर घर जाकर गाना गाकर पैसे मांगती । जैसे ही दो ढिरियां मिल जाती , हमाय गले से अपने आप गीत के बोल निकलने शुरू हो जाते –
‘ ढिरिया में ढिरिया मिल गयी , नारे सुआटा , ढिरिया जन्म्ा की सौत
, सौत पठा दो भइया मायके , नारे सुआटा , हम तुम करहै राज
राज भले भाई बाप के नारे सुआटा , जां ठाड़े तां खेल ,
जरे बरै वौ सासरों नारे सुआटा , जां ठाड़े तां सोच
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें