छंद सलिला:
दोधक छंद
संजीव
*
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रा वज्रा, उपेन्द्र वज्रा, कीर्ति, घनाक्षरी, प्रेमा, वाणी, शक्तिपूजा, सार, माला, शाला, हंसी)
दोधक दो गुरु तुकान्ती पंक्तियों का मात्रिक छंद है. इस छंद में हर पंक्ति में ३ भगण तथा २ गुरु कुल १६ मात्राएँ तथा ११ वर्ण मात्राएँ होते हैं.
तीन भगन दो गुरु मिल रचते, दोधक छंद ललाम
ग्यारह अक्षर सोलह मात्रा, तालमेल अभिराम
उदाहरण:
१. काम न काज जिसे वह नेता। झूठ कहे जन-रोष प्रणेता।।
होश न हो पर जोश दिखाये। लोक ठगा सुनता रह जाए।।
दे खुद ही खुद को यश सारा। भोग रहा पद को मद-मारा।।
२. कौन कहो सुख-चैन चुराते। काम नहीं पर काम जताते।।
मोह रहे कब से मन मेरा। रावण की भगिनी पग-फेरा।।
होकर बेसुध हाय लगाती। निष्ठुर कौन? बनो मम साथी।।
स्त्री मुझ सी तुम सा नर पाये। मान कहा, नहिं जीवन जाए।।
३. बंदर बालक एक सरीखे…
बात न मान करें मनमानी। मान रहे खुद को खुद ज्ञानी।
कौन कहे कब क्या कर देंगे। कूद गिरे उठ रो-हँस लेंगे।
ऊधम खूब करें, संग चीखें…
खा कम फेंक रहे मिल ज्यादा, याद नहीं रहता निज वादा।
शांत रहें खाकर निज कसमें, आज कहें बिसरें सब रस्में।
राह नहीं इनको कुछ दीखे… -----------------------
salil.sanjiv@gmail.com
hindi sahitya salila.blogspot.in
दोधक छंद
संजीव
*
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रा वज्रा, उपेन्द्र वज्रा, कीर्ति, घनाक्षरी, प्रेमा, वाणी, शक्तिपूजा, सार, माला, शाला, हंसी)
दोधक दो गुरु तुकान्ती पंक्तियों का मात्रिक छंद है. इस छंद में हर पंक्ति में ३ भगण तथा २ गुरु कुल १६ मात्राएँ तथा ११ वर्ण मात्राएँ होते हैं.
तीन भगन दो गुरु मिल रचते, दोधक छंद ललाम
ग्यारह अक्षर सोलह मात्रा, तालमेल अभिराम
उदाहरण:
१. काम न काज जिसे वह नेता। झूठ कहे जन-रोष प्रणेता।।
होश न हो पर जोश दिखाये। लोक ठगा सुनता रह जाए।।
दे खुद ही खुद को यश सारा। भोग रहा पद को मद-मारा।।
२. कौन कहो सुख-चैन चुराते। काम नहीं पर काम जताते।।
मोह रहे कब से मन मेरा। रावण की भगिनी पग-फेरा।।
होकर बेसुध हाय लगाती। निष्ठुर कौन? बनो मम साथी।।
स्त्री मुझ सी तुम सा नर पाये। मान कहा, नहिं जीवन जाए।।
३. बंदर बालक एक सरीखे…
बात न मान करें मनमानी। मान रहे खुद को खुद ज्ञानी।
कौन कहे कब क्या कर देंगे। कूद गिरे उठ रो-हँस लेंगे।
ऊधम खूब करें, संग चीखें…
खा कम फेंक रहे मिल ज्यादा, याद नहीं रहता निज वादा।
शांत रहें खाकर निज कसमें, आज कहें बिसरें सब रस्में।
राह नहीं इनको कुछ दीखे… -----------------------
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