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बुधवार, 11 दिसंबर 2013

muktak: GAHOI -sanjiv


मुक्तक :
गहोई
कहो पर उपकार की क्या फसल बोई?
मलिनता क्या ज़िंदगी से तनिक धोई?
सत्य-शिव-सुन्दर 'सलिल' क्या तनिक पाया-
गहो ईश्वर की कृपा तब हो गहोई।।
*
​कहो किसका कब सदा होता है कोई?

कहो किसने कमाई अपनी न खोई?

कर्म का औचित्य सोचो फिर करो तुम-

कर गहो ईमान तब होगे गहोई।।
*

सफलता कब कहो किसकी हुई गोई?

श्रम करो तो रहेगी किस्मत न सोई.

रास होगी श्वास की जब आस के संग-

गहो ईक्षा संतुलित तब हो गहोई।।
*

कर्म माला जतन से क्या कभी पोई?

आस जाग्रत रख हताशा रखी सोई?

आपदा में धैर्य-संयम नहीं खोना-

गहो ईप्सा नियंत्रित तब हो गहोई।।
*

सफलता अभिमान कर कर सदा रोई.

विफलता की नष्ट की क्या कभी चोई..

प्रयासों को हुलासों की भेंट दी क्या?

गहो ईर्ष्या 'सलिल' मत तब हो गहोई
*
(गोई = सखी, ईक्षा = दृष्टि, पोई = पिरोई / गूँथी,
ईप्सा = इच्छा,
​चोई = जलीय खरपतवार)







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