दोहा सलिला:
अभिकल्पन रूपांकन, संरचना का मूल
गुणवत्ता निर्माण का, प्राण न जाएँ भूल
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रेखांकन ही तय करे, रूप-माप-आकार
सजक पर्यवेक्षण अगर, सपना हो साकार
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सूक्ष्म गौड़ बारीकियाँ, अधिक चाहतीं ध्यान
बाधाओं का कीजिये, 'सलिल' पूर्व अनुमान
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अनसोची कठिनाई का, करे सामना धैर्य
समाधान सम्यक मिले, रचें सृष्टि निर्वेर्य
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ब्रम्हा-हरि-शिव पुजे कर, रचना-पालन-नाश
अभियंता यह सब करे, जग सच माने काश
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धरती के नव तीर्थ हैं, 'सलिल' नये निर्माण
अभियंता नित फूँकते, पत्थर में भी प्राण
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अभियंता नित फूँकते, पत्थर में भी प्राण
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दृढ़ संरचना प्रमुख है, सज्जा मानें गौड़
होड़ न स्पर्धा करें, व्यर्थ न चलिये दौड़
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शशि-मंगल-सागर रहे, अभियंतागण नाप
सृष्टि-स्रजन के राज भी, चाह रहे लें माप
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कल से कल को जोड़ते, अभियंता ही आज
कूल-किनारे एक कर, क्या जाने किस व्याज?
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कल दे कल की चाह में, तोड़ें बाधा-पाश
दिग्दिगंत सँग नापते, अभियंता आकाश
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सामाजिक अभियांत्रिकी, समरस रचे समाज
मिटे अंध-श्रद्धा 'सलिल', शांति कर सके राज
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सॉफ्टवेयर अभियांत्रिकी, है युग की पहचान
करे कठिन को सरल यह, देकर 'सलिल' निदान
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सूक्ष्म काल-गणना करे, ज्योतिष वर्षों-वर्ष
पुष्टि करे विज्ञान भी, भारत का उत्कर्ष
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समझ वेद-विज्ञान को, पश्चिम उन्नत आज
पिछड़ गये हम पूजकर, 'सलिल' हुआ सच-राज
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भारत की खोजें हुईं, क्यों पश्चिम के नाम?
रचें नया इतिहास हम, खोजें सत्य तमाम
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जगवाणी हिंदी करे, अंतरिक्ष में घोष
नहीं हिन्द में मान है, क्यों-किसका है दोष?
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सुर-वाणी है संस्कृत, जनवाणी हैं अन्य
जगवाणी हिंदी 'सलिल', सचमुच दिव्य अनन्य
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अंग्रेजी लिपिहीन है, ली रोमन से भीख
दंभ श्रेष्ठता का करे, दे अन्यों को सीख
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हिंदी वर्णोच्चार है, ध्वनियों के अनुसार
जो बोलें वह लिख-पढ़, रीति-नीति व्यवहार*
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