नया वर्ष है...
संजीव 'सलिल'
*
खड़ा मोड़ पर आकर फिर इक नया वर्ष है।
पहलू में निज किये समाहित शोक-हर्ष है।।
करें नमस्ते, हाथ मिलाएं, टा-टा कह दें।
गत को कर दें विदा, गलत को कभी न शह दें।।
आगत स्वागत श्रम-संयम-सहकार सीख ले-
काल कह रहा: 'रे इंसां! आइना देख ले।।'
स्वार्थ-जिद्द के आगे बेबस क्यों विमर्श है?
खड़ा मोड़ पर आकर फिर इक नया वर्ष है...
शुभ की लेकर आड़ अशुभ क्यों पली भावना?
भोग प्रबल क्यों हुआ, सबल अनकही कामना??
उत्तर देगा कौन?, कहाँ-किसकी गलती है?
उतर सड़क पर कर में पत्थर थाम मारना।
वर्षों में निर्माण, नाश पल में, अमर्ष है।
खड़ा मोड़ पर आकर फिर इक नया वर्ष है...
बना लिया बाज़ार देश तज संस्कार सब।
अनाचार को देख याद क्यों अब आता रब?
धन-सुविधा ने मोहा, त्यागा निज माटी को-
'रूखी खा संतोष करें'- निज परिपाटी को।।
सज्जन है असहाय, करे दुर्जन कु-कर्ष है।
खड़ा मोड़ पर आकर फिर इक नया वर्ष है...
*
कर्ष = झुकाना, जोतना, खींचना
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
संजीव 'सलिल'
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खड़ा मोड़ पर आकर फिर इक नया वर्ष है।
पहलू में निज किये समाहित शोक-हर्ष है।।
करें नमस्ते, हाथ मिलाएं, टा-टा कह दें।
गत को कर दें विदा, गलत को कभी न शह दें।।
आगत स्वागत श्रम-संयम-सहकार सीख ले-
काल कह रहा: 'रे इंसां! आइना देख ले।।'
स्वार्थ-जिद्द के आगे बेबस क्यों विमर्श है?
खड़ा मोड़ पर आकर फिर इक नया वर्ष है...
शुभ की लेकर आड़ अशुभ क्यों पली भावना?
भोग प्रबल क्यों हुआ, सबल अनकही कामना??
उत्तर देगा कौन?, कहाँ-किसकी गलती है?
उतर सड़क पर कर में पत्थर थाम मारना।
वर्षों में निर्माण, नाश पल में, अमर्ष है।
खड़ा मोड़ पर आकर फिर इक नया वर्ष है...
बना लिया बाज़ार देश तज संस्कार सब।
अनाचार को देख याद क्यों अब आता रब?
धन-सुविधा ने मोहा, त्यागा निज माटी को-
'रूखी खा संतोष करें'- निज परिपाटी को।।
सज्जन है असहाय, करे दुर्जन कु-कर्ष है।
खड़ा मोड़ पर आकर फिर इक नया वर्ष है...
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कर्ष = झुकाना, जोतना, खींचना
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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