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मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

geet; naya varsh hai -sanjiv

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गीत: नया वर्ष है...
खड़ा मोड़ पर आकर फिर
एक नया वर्ष है...

कल से कल का सेतु आज है यह मत भूलो|
पाँव जमीं पर जमा, आसमां को भी छू लो..

मंगल पर जाने के पहले
भू का मंगल -
कर पायें कुछ तभी कहें
पग तले अर्श है|
खड़ा मोड़ पर आकर फिर
एक नया वर्ष है...

आँसू न बहा, दिल जलता है, चुप रह, जलने दे|
नयन उनीन्दें हैं तो क्या, सपने पलने दे..

संसद में नूराकुश्ती से
क्या पाओगे?
सार्थक तब जब आम आदमी
कहे हर्ष है|
खड़ा मोड़ पर आकर फिर
एक नया वर्ष है...

गगनविहारी माया की ममता पाले है|
अफसर, नेता, सेठ कर रहे घोटाले हैं|

दोष बताएं औरों के
निज दोष छिपाकर-
शीर्षासन कर न्याय कहे
सिर धरा फर्श है|
खड़ा मोड़ पर आकर फिर
एक नया वर्ष है...

धनी और निर्धन दोनों अधनंगे फिरते|
मध्यमवर्गी वर्जनाएं रच ढोते-फिरते..

मनमानी व्याख्या सत्यों
की करे पुरोहित-
फतवे जारी हुए न लेकिन
कुछ विमर्श है|
खड़ा मोड़ पर आकर फिर
एक नया वर्ष है...

चले अहर्निश ऊग-डूब कब सोचे सूरज?
कर कर कोशिश फल की चिंता काश सकें तज..

कंकर से शंकर गढ़ना हो
लक्ष्य हमारा-
विषपायी हो 'सलिल'
कहें: त्याग अमर्श है|
खड़ा मोड़ पर आकर फिर
एक नया वर्ष है...

*

कर्ष = झुकाना, जोतना, खींचना
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com

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