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मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

geet: ab to apna bhal utha -sanjiv

नवगीत: 

अब तो अपना भाल उठा... 

संजीव 'सलिल'

*
बहुत झुकाया अब तक तूने 
अब तो अपना भाल उठा...
*
समय श्रमिक!
मत थकना-रुकना.
बाधा के सम्मुख
मत झुकना.
जब तक मंजिल
कदम न चूमे-
माँ की सौं
तब तक
मत चुकना.

अनदेखी करदे छालों की
गेंती और कुदाल उठा...
*
काल किसान!
आस की फसलें.
बोने खातिर
एड़ी घिस ले.
खरपतवार 
सियासत भू में-
जमी- उखाड़
न न मन-बल फिसले.
पूँछ दबा शासक-व्यालों की
पोंछ पसीना भाल उठा...
*
ओ रे वारिस
नए बरस के.
कोशिश कर
क्यों घुटे तरस के?
भाषा-भूषा भुला
न अपनी-
गा बम्बुलिया
उछल हरष के.
प्रथा मिटा साकी-प्यालों की
बजा मंजीरा ताल उठा...
*

5 टिप्‍पणियां:

  1. Vandana Tiwari

    बहुत आभार आदरणीय! यह महत्वपूर्ण नवगीत साझा करने लिए।
    मैं प्रार्थना करती हूं, मानवीय संवेदना और मानवता,जो आज की दौड़ में कुचलती जा रही है,उसका वाहक आपका साहित्य बने... सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. Kumar gaurav 'Ajitendu'

    शानदार नवगीत है आचार्य, प्रेरणादायी भी।

    जवाब देंहटाएं
  3. Shriprakash Shukla द्वारा yahoogroups.com ekavita


    आदरणीय आचार्य जी,

    इस उत्तम रचना के लिए ढेर सी बधाई । नव वर्ष आप एवं आपके समस्त परिवार के लिए मंगल मय हो और असीम खुशियां लाये ।

    सादर

    श्रीप्रकाश शुक्ल

    जवाब देंहटाएं
  4. sn Sharma द्वारा yahoogroups.com ekavita

    आशीर्वाद के लिए आपका धन्यवाद
    नव-वर्ष आप को भी सपरिवार मंगलमय हो

    कमल

    जवाब देंहटाएं
  5. vijay3@comcast.net द्वारा yahoogroups.com

    अति सुन्दर ! बधाई।

    सादर,

    विजय

    जवाब देंहटाएं