दोहा सलिला:
पानी रहा न आँख में
संजीव
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पानी रहा न आँख में, बाकी रहा न मान
पानी बहा न आँख तू, आँख तरेर सुजान *
पानी-पानी हो गये, बिन पानी तालाब
पानी खोकर आँख का, मनुज हुआ बे-आब
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पानी पर आँखें रखें, हो न प्रदूषित और
अमल विमल निर्मल 'सलिल', धरती का सिरमौर
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सुमुखि! चैन हर ले गयीं, आँखें पानीदार
आँखों से आँखें मिलीं, डूबीं मिला न पार
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बहता पानी आँख से, जब हो दिल में दर्द
घूर आँख देखें- जमे, खून शत्रु हो सर्द
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Sanjiv verma 'Salil'
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Sanjiv verma 'Salil'
Mahipal Tomar द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंज़ायकेदार दोहे , बधाई संजीव जी , सादर -महिपाल
Kusum Vir द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंekavita
आदरणीय आचार्य जी,
अद्भुत !
अति सुन्दर !
पानी के कितने अनेकार्थी सन्दर्भ और उन सन्दर्भों में आख्यातित सम्बन्धों की
विशद व्याख्या कर उन्हें दोहों में पिरोना तो कोई आपसे सीखे l
बधाई एवं अशेष सराहना l
सादर,
कुसुम वीर