फ़ॉलोअर

गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

doha salila: pani raha n aankh men -sanjiv

दोहा सलिला:
​पानी रहा न आँख में
संजीव
*
पानी रहा न आँख में, बाकी रहा न मान
पानी बहा न आँख तू, आँख तरेर सुजान
*
पानी-पानी हो गये, बिन पानी तालाब
पानी खोकर आँख का, मनुज हुआ बे-आब
*
पानी पर आँखें रखें, हो न प्रदूषित और
अमल विमल निर्मल 'सलिल', धरती का सिरमौर
*
सुमुखि! चैन हर ले गयीं, आँखें पानीदार
आँखों से आँखें मिलीं, डूबीं मिला न पार
*
बहता पानी आँख से, जब हो दिल में दर्द
घूर आँख देखें- जमे, खून शत्रु हो सर्द
*
Sanjiv verma 'Salil'
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma '

2 टिप्‍पणियां:

  1. Mahipal Tomar द्वारा yahoogroups.com

    ज़ायकेदार दोहे , बधाई संजीव जी , सादर -महिपाल

    जवाब देंहटाएं
  2. Kusum Vir द्वारा yahoogroups.com
    ekavita


    आदरणीय आचार्य जी,
    अद्भुत !
    अति सुन्दर !
    पानी के कितने अनेकार्थी सन्दर्भ और उन सन्दर्भों में आख्यातित सम्बन्धों की
    विशद व्याख्या कर उन्हें दोहों में पिरोना तो कोई आपसे सीखे l
    बधाई एवं अशेष सराहना l
    सादर,
    कुसुम वीर

    जवाब देंहटाएं