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सोमवार, 9 दिसंबर 2013

mukatak salila: nari - sanjiv

मुक्तक सलिला:
नारी अबला हो या सबला, बला न उसको मानो रे
दो-दो मात्रा नर से भारी, नर से बेहतर जानो रे
जड़ हो बीज धरा निज रस से, सिंचन कर जीवन देती-
प्रगटे नारी से, नारी में हो विलीन तर-तारो रे
*
उषा दुपहरी संध्या रजनी जहाँ देखिए नारी है
शारद रमा शक्ति नारी ही नर नाहर पर भारी है
श्वास-आस मति-गति कविता की नारी ही चिंगारी हैं-
नर होता होता है लेकिन नारी तो अग्यारी है
*
​नेकी-बदी रूप नारी के, धूप-छाँव भी नारी है
​गति-यति पगडंडी मंज़िल में नारी की छवि न्यारी है​

​कृपा, क्षमा, ममता, करुणा, माया, काया या चैन बिना

जननी, बहिना, सखी, भार्या, भौजी, बिटिया प्यारी है
*​

facebook: sahiyta salila / sanjiv verma '

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