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गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

छंद सलिला:
दोधक छंद
संजीव
*
उदहारण:
१. काम न काज जिसे वह नेता / दोष दिखा जन-रोष प्रणेता
   होश न हो पर जोश दिखाए / झूठ लगे सच यूँ भरमाये
   दे खुद को खुद ही यश सारा / भोग रहा पद का सुख न्यारा

२. कौन? कहो मन_चैन-चुराते/ काम नहीं पर काम जगाते
   मोह रहे कब से मन मेरा / रावण को भगिनी पग-फेरा
   होकर बेसुध हाय लगती / निष्ठुर कौन? बनो मम साथी
   स्त्री मुझ सी तुम सा वर पाये / मान कहा, नहिं जीवन जाए

३. बंदर बालक एक सरीखे---
   बात न मान करें मनमानी
   मान रहे खुद को खुद ज्ञानी
   कौन कहे कब क्या कर देंगे?
   कूद-गिरे उठ रो-हँस लेंगे
   ऊधम खूब मरें संग चीखें---
   खा कम फेंक रहे हैं ज्यादा
   याद नहीं इनको निज वादा
   'शांत रहें' कल खाकर कसमें
   आज कहें बिसरी सब रस्में
   राह नहीं इनको कुछ दीखे---
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