दोहा सलिला :
संजीव
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जन्म ब्याह राखी तिलक, गृह-प्रवेश त्यौहार
हर अवसर पर दें 'सलिल', पुस्तक ही उपहार
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हिंदी आटा माढ़िये, उर्दू मोयन डाल
'सलिल' संस्कृत सान दे, पूड़ी बने कमाल
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नेह नर्मदा नीर में, अवगाहन कर आप
दिल को दिल से जोड़िये, सकें विश्व में व्याप
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दिन कर दिनकर ने दिया, जाग-उठो सन्देश
सुना अनसुना कर दिया, निशिचर ने आदेश
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संध्या-वंदन कर रहा, आँखें मिला दिनेश
ननद निशा ने रूठकर, असमय किया प्रवेश
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महावीर ने हार दिल, पहनाया भुज-हार
हुई विनीता गर्विता, कर सोलह सिंगार
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निशानाथ-दिनपति मिले, भू-नभ देखें दंग
सुलह हुई या छिड़ेगा, अब दोनों में जंग
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दुख का प्रबल प्रभाव है, सुख का निपट अभाव
सरल स्वाभाव करे 'सलिल', सबसे विहँस निभाव
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Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
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