hindi chhand salila

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मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

janak chhandi salila: sanjiv

जनक छंदी सलिला: २                                                                         

संजीव 'सलिल'
*
शुभ क्रिसमस शुभ साल हो,
   मानव इंसां बन सके.
      सकल धरा खुश हाल हो..
*
दसों दिशा में हर्ष हो,
   प्रभु से इतनी प्रार्थना-
       सबका नव उत्कर्ष हो..
*
द्वार ह्रदय के खोल दें,
   बोल क्षमा के बोल दें.
      मधुर प्रेम-रस घोल दें..
*
तन से पहले मन मिले,
   भुला सभी शिकवे-गिले.
      जीवन में मधुवन खिले..
*
कौन किसी का हैं यहाँ?
   सब मतलब के मीत हैं.
      नाम इसी का है जहाँ..
*
लोकतंत्र नीलाम कर,
   देश बेचकर खा गये.
      थू नेता के नाम पर..
*
सबका सबसे हो भला,
   सभी सदा निर्भय रहें.
      हर मन हो शतदल खिला..
*
सत-शिव सुन्दर है जगत,
   सत-चित -आनंद ईश्वर.
      हर आत्मा में है प्रगट..
*
सबको सबसे प्यार हो,
  अहित किसी का मत करें.
     स्नेह भरा संसार हो..
*
वही सिंधु है, बिंदु भी,
   वह असीम-निस्सीम भी.
      वही सूर्य है, इंदु भी..
*
जन प्रतिनिधि का आचरण,
   जन की चिंता का विषय.
      लोकतंत्र का है मरण..
*
शासन दुश्शासन हुआ,
   जनमत अनदेखा करे.
      कब सुधरेगा यह मुआ?
*
सांसद रिश्वत ले रहे,
   क़ैद कैमरे में हुए.
      ईमां बेचे दे रहे..
*
सबल निबल को काटता,
   कुर्बानी कहता उसे.
      शीश न निज क्यों काटता?
*
जीना भी मुश्किल किया,
   गगन चूमते भाव ने.
      काँप रहा है हर जिया..
*
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navgeet: mahakal ke... sanjiv

नव वर्ष पर नवगीत: 

महाकाल के महाग्रंथ का --

संजीव 'सलिल'

*
महाकाल के महाग्रंथ का

नया पृष्ठ फिर आज खुल रहा....

*
वह काटोगे,

जो बोया है.

वह पाओगे,

जो खोया है.

सत्य-असत, शुभ-अशुभ तुला पर

कर्म-मर्म सब आज तुल रहा....
*
खुद अपना

मूल्यांकन कर लो.

निज मन का

छायांकन कर लो.

तम-उजास को जोड़ सके जो

कहीं बनाया कोई पुल रहा?...

*
तुमने कितने

बाग़ लगाये?

श्रम-सीकर

कब-कहाँ बहाए?

स्नेह-सलिल कब सींचा?

बगिया में आभारी कौन गुल रहा?...

*

स्नेह-साधना करी

'सलिल' कब.

दीन-हीन में

दिखे कभी रब?

चित्रगुप्त की कर्म-तुला पर

खरा कौन सा कर्म तुल रहा?...

*
खाली हाथ?

न रो-पछताओ.

कंकर से

शंकर बन जाओ.

ज़हर पियो, हँस अमृत बाँटो.

देखोगे मन मलिन धुल रहा...

**********************
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doha salila: naya saal -sanjiv

नये साल की दोहा सलिला:

संजीव'सलिल' 
*
उगते सूरज को सभी, करते सदा प्रणाम.
जाते को सब भूलते, जैसे सच बेदाम..
*
हम न काल के दास हैं, महाकाल के भक्त.
कभी समय पर क्यों चलें?, पानी अपना रक्त..
 *
बिन नागा सूरज उगे, सुबह- ढले हर शाम.
यत्न सतत करते रहें, बिना रुके निष्काम..
  *
अंतिम पल तक दिये से, तिमिर न पाता जीत. 
सफर साँस का इस तरह, पूर्ण करें हम मीत..
  *
संयम तज हम बजायें, व्यर्थ न अपने गाल.
बन संतोषी हों सुखी, रखकर उन्नत भाल..
  *
ढाई आखर पढ़ सुमिर, तज अद्वैत वर द्वैत.  
मैं-तुम मिट, हम ही बचे, जब-जब खेले बैत.. 
  *
जीते बाजी हारकर, कैसा हुआ कमाल.
'सलिल'-साधना सफल हो, सबकी अबकी साल..
*
भुला उसे जो है नहीं, जो है उसकी याद.
जीते की जय बोलकर, हो जा रे नाबाद..
*
नये साल खुशहाल रह, बिना प्याज-पेट्रोल..
मुट्ठी में समान ला, रुपये पसेरी तौल..
*
जो था भ्रष्टाचार वह, अब है शिष्टाचार.
नये साल के मूल्य नव, कर दें भव से पार..
*
भाई-भतीजावाद या, चचा-भतीजावाद. 
राजनीति ने ही करी, दोनों की ईजाद..
*
प्याज कटे औ' आँख में, आँसू आयें सहर्ष. 
प्रभु ऐसा भी दिन दिखा, 'सलिल' सुखद हो वर्ष..
*
जनसँख्या मंहगाई औ', भाव लगाये होड़. 
कब कैसे आगे बढ़े, कौन शेष को छोड़.. 
*
ओलम्पिक में हो अगर, लेन-देन का खेल. 
जीतें सारे पदक हम, सबको लगा नकेल..
*
पंडित-मुल्ला छोड़ते, मंदिर-मस्जिद-माँग.
कलमाडी बनवाएगा, मुर्गा देता बांग..
*
आम आदमी का कभी, हो किंचित उत्कर्ष.
तभी सार्थक हो सके, पिछला-अगला वर्ष..
*
गये साल पर साल पर, हाल रहे बेहाल.
कैसे जश्न मनायेगी. कुटिया कौन मजाल??
*
धनी अधिक धन पा रहा, निर्धन दिन-दिन दीन. 
यह अपने में लीन है, वह अपने में लीन..
****************
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geet: ab to apna bhal utha -sanjiv

नवगीत: 

अब तो अपना भाल उठा... 

संजीव 'सलिल'

*
बहुत झुकाया अब तक तूने 
अब तो अपना भाल उठा...
*
समय श्रमिक!
मत थकना-रुकना.
बाधा के सम्मुख
मत झुकना.
जब तक मंजिल
कदम न चूमे-
माँ की सौं
तब तक
मत चुकना.

अनदेखी करदे छालों की
गेंती और कुदाल उठा...
*
काल किसान!
आस की फसलें.
बोने खातिर
एड़ी घिस ले.
खरपतवार 
सियासत भू में-
जमी- उखाड़
न न मन-बल फिसले.
पूँछ दबा शासक-व्यालों की
पोंछ पसीना भाल उठा...
*
ओ रे वारिस
नए बरस के.
कोशिश कर
क्यों घुटे तरस के?
भाषा-भूषा भुला
न अपनी-
गा बम्बुलिया
उछल हरष के.
प्रथा मिटा साकी-प्यालों की
बजा मंजीरा ताल उठा...
*
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geet: naya varsh hai -sanjiv

नया वर्ष है...
संजीव 'सलिल'
*
खड़ा मोड़ पर आकर फिर इक नया वर्ष है।
पहलू में निज किये समाहित शोक-हर्ष है।।

करें नमस्ते, हाथ मिलाएं, टा-टा कह दें।
गत को कर दें विदा, गलत को कभी न शह दें।।
आगत स्वागत श्रम-संयम-सहकार सीख ले-
काल कह रहा: 'रे इंसां! आइना देख ले।।'
स्वार्थ-जिद्द के आगे बेबस क्यों विमर्श है?
खड़ा मोड़ पर आकर फिर इक नया वर्ष है...

शुभ की लेकर आड़ अशुभ क्यों पली भावना?
भोग प्रबल क्यों हुआ, सबल अनकही कामना??
उत्तर देगा कौन?, कहाँ-किसकी गलती है?
उतर सड़क पर कर में पत्थर थाम मारना।
वर्षों में निर्माण, नाश पल में, अमर्ष है।  
खड़ा मोड़ पर आकर फिर इक नया वर्ष है...

बना लिया बाज़ार देश तज संस्कार सब। 
अनाचार को देख याद क्यों अब आता रब?
धन-सुविधा ने मोहा, त्यागा निज माटी को-
'रूखी खा संतोष करें'- निज परिपाटी को।।
सज्जन है असहाय, करे दुर्जन कु-कर्ष है।
खड़ा मोड़ पर आकर फिर इक नया वर्ष है...
*
कर्ष = झुकाना, जोतना, खींचना
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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geet; naya varsh hai -sanjiv

IMG_6224.JPG 

गीत: नया वर्ष है...
खड़ा मोड़ पर आकर फिर
एक नया वर्ष है...

कल से कल का सेतु आज है यह मत भूलो|
पाँव जमीं पर जमा, आसमां को भी छू लो..

मंगल पर जाने के पहले
भू का मंगल -
कर पायें कुछ तभी कहें
पग तले अर्श है|
खड़ा मोड़ पर आकर फिर
एक नया वर्ष है...

आँसू न बहा, दिल जलता है, चुप रह, जलने दे|
नयन उनीन्दें हैं तो क्या, सपने पलने दे..

संसद में नूराकुश्ती से
क्या पाओगे?
सार्थक तब जब आम आदमी
कहे हर्ष है|
खड़ा मोड़ पर आकर फिर
एक नया वर्ष है...

गगनविहारी माया की ममता पाले है|
अफसर, नेता, सेठ कर रहे घोटाले हैं|

दोष बताएं औरों के
निज दोष छिपाकर-
शीर्षासन कर न्याय कहे
सिर धरा फर्श है|
खड़ा मोड़ पर आकर फिर
एक नया वर्ष है...

धनी और निर्धन दोनों अधनंगे फिरते|
मध्यमवर्गी वर्जनाएं रच ढोते-फिरते..

मनमानी व्याख्या सत्यों
की करे पुरोहित-
फतवे जारी हुए न लेकिन
कुछ विमर्श है|
खड़ा मोड़ पर आकर फिर
एक नया वर्ष है...

चले अहर्निश ऊग-डूब कब सोचे सूरज?
कर कर कोशिश फल की चिंता काश सकें तज..

कंकर से शंकर गढ़ना हो
लक्ष्य हमारा-
विषपायी हो 'सलिल'
कहें: त्याग अमर्श है|
खड़ा मोड़ पर आकर फिर
एक नया वर्ष है...

*

कर्ष = झुकाना, जोतना, खींचना
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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geet; naye varsh men -sanjiv

गीत:
झाँक रही है...
संजीव 'सलिल'
*
झाँक रही है
खोल झरोखा
नए वर्ष में धूप सुबह की...
*
चुन-चुन करती चिड़ियों के संग
कमरे में आ.
बिन बोले बोले मुझसे
उठ! गीत गुनगुना.
सपने देखे बहुत, करे
साकार न क्यों तू?
मुश्किल से मत डर, ले
उनको बना झुनझुना.

आँक रही
अल्पना कल्पना
नए वर्ष में धूप सुबह की...
*
कॉफ़ी का प्याला थामे
अखबार आज का.
अधिक मूल से मोह पीला
क्यों कहो ब्याज का?
लिए बांह में बांह
डाह तज, छह पल रही-
कशिश न कोशिश की कम हो
है सबक आज का.

टाँक रही है
अपने सपने
नए वर्ष में धूप सुबह की...
*
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सोमवार, 30 दिसंबर 2013

haiku geet : roop apna -sanjiv

​
हाइकु गीत:
रूप अपना
संजीव
*
रूप अपना / सराहती रही है / रूपसी आप
किसे बताये / प्रिय के नयनों में / गयी है व्याप...
*
है विधु लता / सी चंचल-चपल / अल्हड कौन
बोले अबोले / दे निशा निमंत्रण / प्रिय को मौन
नेह नर्मदा / ले रही हिलोरें ज्यों / मन्त्र का जाप...
*
कुसुम कली / किरण की कोर सी / है मुस्कुराई
आशा-आकांक्षा / मन में बसी पर / हाथ न आई
धर अधर / अधर में, अधर / अंकित छाप...
*
जीभ चिढ़ाये / नवोढ़ा सी लजाये / ठेंगा दिखाये
हरेक पल / समुद से सलिला / दूरी मिटाये
अरूणाभित / सिन्दूरी कपोलों को / छिपाये काँप...
*
अमराई में / कूकती कोकिला सी / देती आनंद
मठा-महेरी / पुरवैया-पछुआ / साँसों के छंद
समय देव ! / मनौती, नहीं देना / विरह शाप...
*
राग-रागिनी / सुर-सरगम सा / अटूट नाता
कभी न टूटे / हे सत्य नारायण! / भाग्य विधाता!!
हे नये वर्ष! / मिले अनंत हर्ष / रहें निष्पाप...
***
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
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facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'



​
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kavita: naya saal -sarveshwar dayal saxena

विरासत:
नए साल की शुभकामनाएँ!

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सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
*
 नए साल की शुभकामनाएँ! खेतों की मेड़ों पर धूल भरे पाँव को कुहरे में लिपटे उस छोटे से गाँव को नए साल की शुभकामनाएं! 
जाँते के गीतों को बैलों की चाल को
करघे को कोल्हू को मछुओं के जाल को
नए साल की शुभकामनाएँ!

इस पकती रोटी को बच्चों के शोर को
चौंके की गुनगुन को चूल्हे की भोर को
नए साल की शुभकामनाएँ!

वीराने जंगल को तारों को रात को
ठंडी दो बंदूकों में घर की बात को
नए साल की शुभकामनाएँ!

इस चलती आँधी में हर बिखरे बाल को
सिगरेट की लाशों पर फूलों से ख़याल को
नए साल की शुभकामनाएँ!

कोट के गुलाब और जूड़े के फूल को
हर नन्ही याद को हर छोटी भूल को
नए साल की शुभकामनाएँ!

उनको जिनने चुन-चुनकर ग्रीटिंग कार्ड लिखे
उनको जो अपने गमले में चुपचाप दिखे
नए साल की शुभकामनाएँ!
===============

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muktak -salil

मुक्तक :
संजीव 'सलिल'
*
भारत नहीं झुका है, भारत नहीं झुकेगा
भारत नहीं चुका है, भारत नहीं चुकेगा
हम-आप मेहनती हों, ईमानदार हों तो-
भारत नहीं रुका है, भारत नहीं रुकेगा
*
आँसू पोंछे किसी आँख का मिलकर हम इस साल
श्रम-सीकर से रहे सुसज्जित सखे हमारा भाल
सघन तिमिर में दीप वर्तिका सदृश जल सकें मौन-
'सलिल' न व्यर्थ बजायें नेता जा संसद में गाल
*
पानी-पानी हो रहे बिन पानी तालाब
पानी खोकर आँख का मनुज हुआ बेआब
राजनीति के खेल में उल्टी चलते चाल-
कांटें सीने से लगा कुचले फूल गुलाब
***


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रविवार, 29 दिसंबर 2013

doha salila: sanjiv

दोहा सलिला:
पौधरोपण कीजिए
संजीव
*
पौधारोपण कीजिए, शुद्ध हो सके वायु
जीवन जियें निरोग सब, मानव हो दीर्घायु
*
एक-एक ग्यारह हुए, विहँसे बारह मास
तेरह पग चलकर हरें, 'सलिल' सभी संत्रास
*
मैं-तुम मिल जब हम हुए, मंज़िल मिली समीप
हों अनेक जब एक तो, तम हरते बन दीप
*
चेतन जब चैतन्य हो, तब होता संजीव
अंतर्मन शतदल सदृश, खिल होता राजीव
*
विजय-पराजय से रहे, जब अंतर्मन दूर
प्रभु-कीर्तन पल-पल करे, श्वासों का संतूर
*
जब तक रीतेगा नहीं, आकांक्षा का कोष
जब तक पायेगा नहीं, अंतर्मन संतोष
*
नित लाती है रवि-किरण, दिनकर का पैगाम
लाली आती उषा के, गालों पर सुन नाम
*
आशीषों की रोटरी, कोशिश की हो राह
वाह परिश्रम की करें, मन में पले न डाह
*
अंकुर पल्लव पौध ही, बढ़ बनते उद्यान
संरक्षण पा ओषजन, से दें जीवन दान
*
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stuti: namo dev nirakar

स्तुति :
नमो देव…
संजीव
*
नमो देव निराकार सकल सृष्टिधारी
निर्गुण से सगुण हुए सद्गुण अवतारी

नाद-ताल-थाप मधुर, अनहद अविकारी
रव-तरंग घर्षण, रस वर्षण जग-तारी

कण-तृण, जड़-चेतन रच प्रगटे साकारी
पंचतत्व पावन हे! द्युति-युति आगारी

धर्म-कर्म-मर्मी विधि-हरि-हर छवि न्यारी
शारद-श्री-शक्ति तुम्हीं, रची सृष्टि सारी

ज्ञान-ध्यान दाता प्रभु! संयम आचारी
नटवर-नटराज देव! अक्षर आकारी

वेद छंद अलंकार भाव छवि निहारी
गीता कुरआन ग्रंथ बाइबिल विहारी

आदि-अंत दिग्दिगंत हम सब आभारी
दया क्षमा करुणा हम चाहते तिहारी
***
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
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शनिवार, 28 दिसंबर 2013

muktika: mile jhukaye piya nigahen -sanjiv

समस्यापूर्ति:
अना की चादर उतार फेंके, मुहब्बतों के चलन में आये
*
मुक्तिका संजीव
*
मिले झुकाये पिया निगाहें, लगा कि चन्दा गहन में आये
बसी बसायी लुटी नगरिया, अमावसी तम सहन में आये

उठी निगाहें गिरी बिजुरिया, न चाक हो दिल तो फिर करे क्या?
मिली नज़रिया छुरी चल गयी, सजन सनम के नयन में आये

समा नज़र में गयी है जबसे, हसीन सूरत करार गम है
पलक किनारे खुले रह गये, करूँ बंद तो सपन में आये

गया दिलरुबा बजा दिलरुबा, न राग जानूँ न रागिनी ही
कहूँ किस तरह विरह न भये, लगन लगी कब लगन में आये

जुदा किया क्यों नहीं बताये?, जुदा रखा ना गले लगाये
खुद न चाहे कभी खुदाया, भुला तेरा दर सदन में आये

छिपा न पाये कली बेकली, भ्रमर गीत जब चमन में गाये
एना की चादर उतार फेंके, मुहब्बतों के चलन में आये

अनहद छेड़ूँ अलस्सुबह, कर लिए मंजीरा सबद सुनाऊँ
'सलिल'-तरंगें कलकल प्रवाहित, मनहर छवि हर-भजन में आये
*

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शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

shatpadee -vishdhar -sanjiv

एक षटपदी

विषधर की अभिराम छवि

संजीव

*

विषधर की अभिराम छवि देख हुए हैरान

ज्यों नेता इस देश के दिखें न--- हैं शैतान

दिखें न हैं शैतान मोहकर जनगण का मन

संसद में जन सेवा का करते हैं मंचन

घपला करने का न चूकते अफसर अवसर

शासन और प्रशासन ही हैं असली विषधर

***
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लेबल: acharya sanjiv verma 'salil', shatpadee

samyik hasya kavita -sanjiv

सामयिक हास्य कविता:

​राहुल जी का डब्बा गोल 
संजीव 


*
लम्बी_चौड़ी डींग हाँकतीं, मगर खुल गयी पल में पोल
मोदी जी का दाँव चल गया, राहुल जी का डब्बा गोल
मातम मना रहीं शीला जी, हुईं सोनिया जी बेचैन
मौका चूके केजरीवाल जी, लेकिन सिद्ध हुए ही मैन
हंग असेम्बली फिर चुनाव का, डंका जनता बजा रही
नेताओं को चैन न आये, अच्छी उनकी सजा रही
लोक तंत्र को लोभ तंत्र जो, बना रहे उनको मारो
अपराधी को टिकिट दे रहे, जो उनको भी फटकारो
गहलावत को वसुंधरा ने, दिन में तारे दिखा दिये
जय-जयकार रमन की होती, जोगी जी पिनपिना गये
खिला कमल शिवराज हँस रहे, पंजा चेहरा छिपा रहा
दिग्गी को रूमाल शीघ्र दो, छिपकर आँसू बहा रहा
मतदाता जागो अपराधी नेता, बनें तो मत मत दो
नोटा बटन दबाओ भैया, एक साथ मिल करवट लो
Sanjiv verma 'Salil'
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jabalpur ki web patrakarita -vivek ranjan

  जबलपुर की वेब पत्रकारिता और साहित्य तथा समाज में उसका योगदान 

विवेक रंजन श्रीवास्तव  
जन संपर्क अधिकारी 
म. प्र. पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी जबलपुर 
मो ९४२५८०६२५२

पौराणिक संदर्भो का स्मरण करें तो नारद मुनि संभवतः पहले पत्रकार कहे जा सकते हैं, इसी तरह  युद्ध भूमि से लाइव रिपोर्टिंग का पहला संदर्भ संजय द्वारा धृतराष्ट्र को महाभारत के युद्ध का हाल सुनाने का है. 
वर्तमान युग में  विश्व में पत्रकारिता का आरंभ सन् 131 ईसा पूर्व रोम में माना जाता है. तब  वहाँ “Acta Diurna” (दिन की घटनाएं) किसी बड़े प्रस्तर पट  या धातु की पट्टी  पर वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति, नागरिकों की सभाओं के निर्णयों और ग्लेडिएटरों की लड़ाइयों के परिणामों के बारे में सूचनाएं समाचार अंकित करके रोम के मुख्य स्थानों पर रखी जाती थीं. मध्यकाल में यूरोप के व्यापारिक केंद्रों में ‘सूचना-पत्र ‘ निकाले जाने लगे जिनमें कारोबार, क्रय-विक्रय और मुद्रा के मूल्य में उतार-चढ़ाव के समाचार लिखे जाते थे.  ये सारे ‘सूचना-पत्र ‘ हाथ से ही लिखे जाते थे. 15वीं शताब्दी के मध्य में योहन गूटनबर्ग ने छापने की मशीन का आविष्कार किया. असल में उन्होंने धातु के अक्षरों का आविष्कार किया.  फलस्वरूप किताबों का ही नहीं, अखबारों का भी प्रकाशन संभव हो सका. 16वीं शताब्दी के अंत में, यूरोप के शहर स्त्रास्बुर्ग में, योहन कारोलूस नाम का कारोबारी धनवान ग्राहकों के लिये सूचना-पत्र लिखवा कर वितरित करता था,  पर हाथ से बहुत सी प्रतियों की नक़ल करने का काम मँहगा और धीमा था. अतः वह छापे की मशीन ख़रीद कर 1605 में समाचार-पत्र छापने लगा.  समाचार-पत्र का नाम था ‘रिलेशन’,  यह विश्व का प्रथम मुद्रित समाचार-पत्र माना जाता है. हिंदी पत्रकारिता का तार्किक और वैज्ञानिक आधार पर काल विभाजन करना कुछ कठिन कार्य है. हिंदी पत्रकारिता का उद्भव सन् 1826 से 1867 माना जाता है. 1867 से 1900 के समय को हिंदी पत्रकारिता के विकास का समय कहा गया है. 1900 से 1947 के समय को हिंदी पत्रकारिता के उत्थान का समय निरूपित किया गया है. जबलपुर में इसी अवधि में पत्रकारिता विकसित हुई. 1947 से अब तक के समय को स्वातंत्र्योत्तर पत्रकारिता कहा जाता है. स्वातंत्र्योत्तर पत्रकारिता में अखबार, पत्रिकायें, रेडियो तथा २० वीं सदी के अंतिम दो दशको में टी वी पत्रकारिता का उद्भव हुआ. २१वी सदी के आरंभ के साथ इंटरनेट तथा सोशल मीडिया का विस्तार हुआ और जब हम हिन्दी के  परिदृश्य में इस प्रौद्योगिकी परिवर्तन को देखते हैं तो हिंदी  पर इसके प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखते हैं . 21 अप्रैल, 2003 की तारीख वह स्वर्णिम तिथि है जब  रात्रि  22:21 बजे हिन्दी के प्रथम ब्लॉगर, मोहाली, पंजाब निवासी आलोक ने अपने ब्लॉग ‘9 2 11’ पर अपना पहला ब्लॉग-आलेख हिन्दी वर्णाक्षरों में इंटरनेट पर पोस्ट किया था. इस तारीख को हिन्दी वेब पत्रकारिता का प्रारंभ कहा जाना चाहिये. 
पत्रकारिता  आधुनिक सभ्यता का एक प्रमुख व्यवसाय है जिसमें समाचारों का एकत्रीकरण, समाचार लिखना, रिपोर्ट करना, सम्पादित करना और समाचार तथा साहित्य का सम्यक चित्रांकन व प्रस्तुतीकरण आदि सम्मिलित हैं. सूचना और साहित्य किसी भी सभ्य समाज की बौद्धिक भूख मिटाने के लिये अनिवार्य जरूरत है. तकनीक के विकास के साथ इस आवश्यकता को पूरा करने के संसाधन बदलते जा रहे हैं. हस्त लिखित अखबार और पत्रिकायें, फिर टंकित तथा साइक्लोस्टायल्ड अथवा फोटोस्टेट पत्रिकायें, न्यूज लैटर या पत्रक, एक एक अक्षर को फर्मे पर कम्पोज करके तथा फोटो सामग्री के ब्लाक बनाकर मुद्रित अखबार की तकनीक, विगत कुछ दशको में तेजी से बदली है और अब बड़े तेज आफसेट मुद्रण की मशीने सुलभ हैं जिनमें ज्यादातर  कार्य वर्चुएल साफ्ट कापी में कम्प्यूटर पर होता है. समाचार संग्रहण व उसके अनुप्रसारण के लिये  टेलीप्रिंटर की पट्टियो को अभी हमारी पीढ़ी भूली नही है. आज हम इंटरनेट से  ईमेल पर पूरे के पूरे कम्पोज अखबारी पन्ने ही यहाँ से वहाँ ट्रांस्फर कर लेते हैं.  
सामाजिक बदलाव में सर्वाधिक महत्व विचारों का ही होता है .लोकतंत्र में विधायिका , कार्यपालिका , न्यायपालिका के तीन संवैधानिक स्तंभों के बाद पत्रकारिता को  चौथे स्तंभ के रूप में मान्यता दी गयी क्योकि पत्रकारिता वैचारिक अभिव्यक्ति का माध्यम है, आम आदमी की नई प्रौद्योगिकी तक  पहुंच और इसकी  त्वरित स्वसंपादित प्रसारण क्षमता के चलते सोशल मीडिया व ब्लाग जगत को लोकतंत्र के पांचवे स्तंभ के रूप में देखा जा रहा है. वैश्विक स्तर पर पिछले कुछ समय में कई सफल जन आंदोलन इसी सोशल मीडिया के माध्यम से खड़े हुये हैं. हमारे देश में भी बाबा रामदेव, अन्ना हजारे के द्वारा भ्रष्टाचार के विरुद्ध  तथा दिल्ली के नृशंस सामूहिक बलात्कार के विरुद्ध बिना बंद, तोड़फोड़ या आगजनी के चलाया गया जन आंदोलन, और उसे मिले जन समर्थन के कारण सरकार को विवश होकर उसके सम्मुख किसी हद तक झुकना पड़ा. इन  आंदोलनो में विशेष रुप से नई पीढ़ी ने इंटरनेट , मोबाइल एस एम एस और मिस्डकाल के द्वारा अपना समर्थन व्यक्त किया. तब से होते निरंतर प्रौद्योगिकी विकास के साथ हिन्दी के महत्व को स्वीकार करते हुये ही बी बी सी, स्क्रेचमाईसोल, रेडियो जर्मनी, टी वी चैनल्स तथा देश के विभिन्न अखबारो तथा न्यूज चैनल्स ने भी अपनी वेबसाइट्स पर पाठको के ब्लाग के पन्ने बना रखे हैं. बदलते तकनीकी परिवेश के चलते अब हर हाथ में एंड्रायड मोबाइल आता जा  रहा है, समाचार के लिये एप्प उपलब्ध करवाये जा रहे हैं. 
ब्लागर्स पार्क दुनिया की पहली ब्लागजीन के रूप में नियमित रूप से मासिक प्रकाशित हो रही है. यह पत्रिका ब्लाग पर प्रकाशित सामग्री को पत्रिका के रूप में संयोजित  करने का अनोखा कार्य कर रही है. मुझे गर्व है कि मैं इसके मानसेवी संपादन मण्डल का सदस्य हूं .  अपने नियमित स्तंभो में  प्रायः समाचार पत्र ब्लाग से सामग्री उधृत करते हैं. हिन्दी ब्लाग के द्वारा जो लेखन हो रहा है उसके माध्यम से साहित्य, कला समीक्षा, फोटो, डायरी लेखन आदि आदि विधाओ में विशेष रूप से युवा रचनाकार अपनी नियमित अभिव्यक्ति कर रहे हैं. वेब दुनिया, जागरण जंकशन, नवभारत टाइम्स  जैसे अनेक हिन्दी पोर्टल ब्लागर्स को बना बनाया मंच व विशाल पाठक परिवार सुगमता से उपलब्ध करवा रहे हैं और उनके लेखन के माध्यम से अपने पोर्टल पर विज्ञापनो के माध्यम से धनार्जन भी करने में सफल हैं. हिन्दी और कम्प्यूटर मीडिया के महत्व को स्वीकार करते हुये ही अपने वोटरो को लुभाने के लिये राजनैतिक दल भी इसे प्रयोग करने को विवश हैं. हिन्दी न जानने वाले राजनेताओ को हमने रोमन हिन्दी में अपने भाषण लिखकर पढ़ते हुये देखा ही है. 
'महर्षि जाबालि की तपोभूमि,  नर्मदांचल,  संस्कारधानी जबलपुर  सारस्वत संपदा से सदैव सम्पन्न रही है. वसुधैव कुटुम्बकम् की वैचारिक उद्घोषणा वैदिक भारतीय संस्कृति की ही देन है. वैज्ञानिक अनुसंधानों, विशेष रूप से संचार क्रांति  तथा आवागमन के संसाधनों के विकास ने तथा विभिन्न देशो की अर्थव्यवस्था की परस्पर प्रत्यक्ष व परोक्ष निर्भरता ने इस सूत्र वाक्य को आज मूर्त स्वरूप दे दिया है. हम भूमण्डलीकरण के युग में जी रहे हैं. सारा विश्व कम्प्यूटर चिप और बिट में सिमटकर एक गाँव बन गया है. लेखन, प्रकाशन, पठन-पाठन में नई प्रौद्योगिकी की दस्तक से आमूल परिवर्तन होते जा रहे हैं. नई पीढ़ी अब बिना कलम-कागज के कम्प्यूटर पर ही  लिख रही है, प्रकाशित हो रही है और पढ़ी जा रही है. ब्लाग तथा सोशल मीडीया वैश्विक पहुँच के साथ वैचारिक अभिव्यक्ति के सहज, सस्ते, सर्वसुलभ, त्वरित साधन बन चुके हैं. वेब-मीडिया सर्वव्यापकता को चरितार्थ करता है जिसमें ख़बरें दिन के चौबीसों घंटे और हफ़्ते के सातों दिन उपलब्ध रहती हैं. जबलपुर वेब मीडीया की पत्रकारिता में पीछे नहीं है, श्री चैतन्य भट्ट समाचार विचार नामक पोर्टल चला रहे हैं जिसमें साहित्य, सामयिक आलेख, कवितायें तथा समाचार नियमित रूप से अपडेट किये जाते हैं. इसकी हिट १००० से उपर प्रतिदिन है. वेब पता है http://samachar-vichar.com/. इसी तरह http://www.palpalindia.comके वेब पते से पलपलइंडिया नामक पोर्टल जबलपुर से चलाया जा रहा है जिसमें आशुतोष असर व अन्य मित्र बढ़िया वेब पत्रकारिता कर रहे हैं. जबलपुर पर वेब साइट्स में http://www.jabalpur.astha.net/ जबलपुर आस्थानेट का भी जिक्र जरूरी है. "दिव्य नर्मदा" जिसके मुद्रित अंक भी पहले प्रकाशित होते रहे हैं  तथा उसके नियमित प्रकाशन में आरही आर्थिक कठिनाईयो के चलते, जिसे वेब पत्रिका बनाने में मेरा विचार, तकनीकी सहयोग व योगदान  रहा है. इसके संपादक मण्डल में भी मुझे रखा गया है, भाई संजीव सलिल इसे बेहद गंभीरता से चला रहे हैं और इस साहित्यिक वेब पत्रिका के हिट सारी दुनिया से मिल रहे हैं इसका वेब पता divyanarmada.blogspot.comहै . प्रतिवाद डाट काम, वेबदुनिया, जागरण जंक्शन, नवभारत टाइम्स ब्लाग, रेडियो मिर्ची ब्लाग्स, स्क्रेच माई सोल ब्लागर्स पार्क, दैनिक भास्कर, आदि सामूहिक ब्लाग्स पर भी जबलपुर से प्रतिदिन विविध सामग्री पोस्ट की जा रही है. हिन्दी साहित्य संगम नाम से वेब डोमेन पर विजय तिवारी किसलय नियमित लिख रहे हैं तथा जबलपुर के साहित्य जगत की विविध हलचलें वेब पर एक सर्च में सुलभ हैं. फेसबुक इन दिनो सर्वाधिक लोकप्रिय सोशल मीडिया है. हिन्दी एक्सप्रेस का पेज https://www.facebook.com/pages/Madhya-Pradesh-Hindi-Express एवं जबलपुर न्यूज का पन्ना https://www.facebook.com/Jabalpur.News समाचारो का लोकप्रिय पेज है . इसके सिवा अनेक युवा समूहो ने जबलपुर पर केंद्रित ग्रुप बना रखे हैं. जबलपुर विभिन्न शासकीय व गैर शासकीय संस्थानो की वेब साइटें, फेसबुक पेज आदि भी सूचना  प्रसारण का महत्वपूर्ण योगदान समाज को दे रहे हैं. मेरे फेसबुक पेज पर जिन भी आयोजनो में मैं उपस्थित हो पाता हूं उनका संक्षिप्त विवरण तथा चित्र कार्यक्रम स्थल से ही पोस्ट करना मेरी आदत में है, जिसके परिणाम यह होते हैं कि मुझसे फेसबुक पर जुड़े तथा मेरे फालोअर लगभग ५००० लोगो तक वह आयोजन तुरंत पहुंच जाता है और उसकी त्वरित प्रतिक्रिया भी मिलती है. यही त्वरित स्वसंपादित प्रकाशन वेब की सबसे बड़ी विशेषता है. यूं तो जबलपुर से ज्योतिष , कुकरी , टूरिज्म , नौकरी , फाइनेस आदि विषयो पर अनेक लोग वेब पर अपने व्यवसायिक हितो के लिये लिख रहे हैं पर जो सार्वजनिक हित के लिये सक्रिय हैं उनमें http://mahendra-mishra1.blogspot.in/ महेंद्र मिश्र, समय चक्र http://sanskaardhani.blogspot.in/ गिरीश बिल्लौरे मिस फिट, http://nomorepowertheft.blogspot.in/ विवेक रंजन श्रीवास्तव "बिजली चोरी के विरुद्ध जन जागरण", "संस्कृत का मजा हिन्दी में", मेरी कवितायें , तथा नमस्कार ब्लाग के साथ चर्चा योग्य हैं. 
http://hindisahityasangam.blogspot.in/ , http://mymaahi.blogspot.in/ महेश ब्रम्हेते "माही ",http://apnajabalpur.blogspot.in/ नितिन पटेल "शेष अशेष" , http://chakreshsurya.blogspot.in/चक्रेश सूर्या "सूर्या ", http://www.janbharat.blogspot.in/ अजय गुप्ता  जनभारत ,http://swapniljain1975.blogspot.in सवप्निल जैन हमारा जबलपुर एवं अंग्रेजी में जबलपुर डायरीhttp://www.jabalpurdiary.com/blogs.php आदि भी प्रमुख ब्लाग हैं. 
बहुत जरुरी है कि कम से कम जबलपुर के सभी निजी ब्लाग व वेब पन्ने एक दूसरे को ब्लागरोल पर जोड़ें जिससे उनका व जबलपुर का व्यापक हित ही होगा. 
        यह सही है कि अभी ब्लाग लेखन नया है पर जैसे जैसे नई कम्प्यूटर साक्षर पीढ़ी बड़ी होगी, इंटरनेट और सस्ता होगा तथा आम लोगो तक इसकी पहुंच बढ़ेगी यह वर्चुएल लेखन और भी ज्यादा सशक्त होता जायेगा।  भविष्य में  लेखन क्रांति का सूत्रधार बनेगा. जैसे-जैसे वेब की पठनीयता बढ़ेगी वेब पत्रकारो को विज्ञापन मिलेंगे और वेब पत्रकारिता कोरी लफ्फाजी या हाई प्रोफाइल बनने के स्वांग से बढ़कर आजीविका का संसाधन भी बन सकेगी. 
फिलहाल जबलपुर की वेब पत्रकारिता विकास के युग में है और नियमित रूप से समाज और साहित्य को अपना सामग्री योगदान तथा इससे जुड़े लोगो को एक सशक्त मंच दे रही है.

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गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

doha salila: pani raha n aankh men -sanjiv

दोहा सलिला:
​पानी रहा न आँख में
संजीव
*
पानी रहा न आँख में, बाकी रहा न मान
पानी बहा न आँख तू, आँख तरेर सुजान
*
पानी-पानी हो गये, बिन पानी तालाब
पानी खोकर आँख का, मनुज हुआ बे-आब
*
पानी पर आँखें रखें, हो न प्रदूषित और
अमल विमल निर्मल 'सलिल', धरती का सिरमौर
*
सुमुखि! चैन हर ले गयीं, आँखें पानीदार
आँखों से आँखें मिलीं, डूबीं मिला न पार
*
बहता पानी आँख से, जब हो दिल में दर्द
घूर आँख देखें- जमे, खून शत्रु हो सर्द
*
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma '
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aaj ki baat: sanjiv

आज की बात:
संजीव 
*
रजनी ने मानव को बख्शी, ख्वाबों की जागीर
हो संजीव उषा हँस बोली, सलिल करो तामीर
*
हर चेहरा ईश्वर का चेहरा, कण-कण में भगवान
हर कंकर में मिलता शंकर, देखे तो इंसान
*
बे-ईमान में भी है ईमान देखिये
हैं बा-ईमान आप से कुछ यह भी लेखिये
अफसर हैं हम भी घर में बोल दे अगर बीबी
चाकर हुए तो क्या हुआ पाई है करीबी
*******
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
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छंद सलिला:
दोधक छंद
संजीव
*
उदहारण:
१. काम न काज जिसे वह नेता / दोष दिखा जन-रोष प्रणेता
   होश न हो पर जोश दिखाए / झूठ लगे सच यूँ भरमाये
   दे खुद को खुद ही यश सारा / भोग रहा पद का सुख न्यारा

२. कौन? कहो मन_चैन-चुराते/ काम नहीं पर काम जगाते
   मोह रहे कब से मन मेरा / रावण को भगिनी पग-फेरा
   होकर बेसुध हाय लगती / निष्ठुर कौन? बनो मम साथी
   स्त्री मुझ सी तुम सा वर पाये / मान कहा, नहिं जीवन जाए

३. बंदर बालक एक सरीखे---
   बात न मान करें मनमानी
   मान रहे खुद को खुद ज्ञानी
   कौन कहे कब क्या कर देंगे?
   कूद-गिरे उठ रो-हँस लेंगे
   ऊधम खूब मरें संग चीखें---
   खा कम फेंक रहे हैं ज्यादा
   याद नहीं इनको निज वादा
   'शांत रहें' कल खाकर कसमें
   आज कहें बिसरी सब रस्में
   राह नहीं इनको कुछ दीखे---
*****  
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गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

hindi chhand : Rola

"विधा विशेष ---
===========
समर्थ छंद रोला :

  • सुरेन्द्र नवल



    रोला एक सम मात्रिक छंद है जिसमें चार दल (पद) होते हैं... प्रत्येक पद/दल (पंक्ति) में 11,13 मात्राओं के साथ सम चरण में तुकांत होना चाहिए... चार पंक्तियों (दलों) वाले इस सम मात्रिक छंद की प्रत्येक पंक्ति (दल) में दो चरण होते हैं जिनमें 11 और 13 मात्राओं पर यति का प्रयोग होता है... इस छंद के विषम चरणों में 11-11 मात्राओं के साथ अंत में गुरु+लघु यानी 21 या तीन लघु यानी 111 आने अपेक्षित है... रोला छंद के सम चरणों में 13-13 मात्राएं होती हैं जिनके अंत में दो गुरु यानी 22 या लघु+लघु+गुरु यानी 112 या चार लघु यानी 1111 आने अपेक्षित है... अधिकाँश विद्वानों का मत है कि रोला छंद के सम चरणों के अंत में दो गुरु 22 ही होने चाहिए लेकिन इसके विरोध में छंद प्रेमी बहुत से प्रमाण भी रखते हैं... यानी अगर सम चरणों में तुकांत साथ अंत में दो गुरु हो तो यह सर्वमान्य है... लय को बनाये रखने के लिए इस छंद की किसी भी पंक्ति (दल) का प्रारम्भ जगण यानी 121 से नहीं होना चाहिए...

    वैसे तो किसी भी छंद को जब काव्यात्मक शब्द विन्यास दिया जाता है तो लयात्मकता स्वतः ही छंद के लक्षणों के अनुसार आ जाती है लेकिन इसके लिए काफी अभ्यास की आवश्यकता होती है इसलिए इसे और सरल करने के लिए इस छंद की लयात्मकता को बताने की आवश्यकता प्रतीत होती है... इस छंद को प्रभावी और प्रवाहमयी बनाने के लिए इसके चरणों में एक निश्चित आंतरिक लय का होना आवश्यक है... यह आंतरिक लय प्रत्येक चरण की कुल मात्रा को अलग अलग घटकों में विभक्त करके बनायी गई है अगर इन घटकों के अनुसार शब्द संयोजन करते हुए छंद रचेंगे तो हर चरण को उत्तम प्रवाह मिलेगा... अगर हम इसमें आंतरिक मात्रिक घटकों का पालन करें तो इस छंद में लय स्वतः और सहज ही आ जायेगी... रोला छंद के सम और विषम चरणों में सुन्दर लय लाने के लिए मात्रिक घटकों का विन्यास इस प्रकार है...

    विषम चरण : 443/3323
    सम चरण : 3244/32332

    इसलिए शब्द संयोजन करते समय शब्दों का चयन इस प्रकार से होना चाहिए कि सम/विषम चरणों में उपरोक्त मात्रिक विन्यास आये... अगर एक साथ एक ही श्रेणी में दो लघु आते हैं तो उनका मात्रिक भार 11 या 2 लिया जा सकता है... ऐसे ही अगर तीन लघु एक ही कतार में आते हैं तो उनको 111/21/12 लिया जा सकता है... लेकिन चरणान्त में दो लघु को गुरु मानने की सुविधा से बचें क्योंकि यह तुकांत योजना के अनुसार उचित नहीं है... उम्मीद करता हूँ कि इस जानकारी के उपरान्त हम सभी इस छंद को और सुन्दर प्रवाह के साथ रच सकते हैं...

    विशेष निवेदन : छंद शास्त्र एक विशाल सागर की तरह है जिसकी गहराई में जितना उतरते जायेंगे उतना ही उसकी बारीकियां जान पायेंगे... उपरोक्त दी गयी जानकारी छंद के बारे में एक प्रारंभिक जानकारी मात्र है... विस्तृत जानकारी इससे आगे भी बहुत है, इसलिए इसे ही सम्पूर्ण जानकारी मानकर किसी प्रकार का विवाद पैदा न करें... यहाँ जो जानकारी दी गयी है वो उन लोगों के लिए दी गयी है जो शिल्पबद्ध सृजन में रुचि तो रखते हैं लेकिन शुरुआत कहाँ से करें इस बारे में अज्ञानता या अपूर्ण जानकारी के कारण प्रयासों को क्रियान्वित नहीं कर पाते हैं... एक अन्य जानकारी उपरोक्त रोला छंद के बारे में यह है कि कृपया इसे दो सोरठा या दोहा का उलट मानकर त्रुटि नहीं करें क्योंकि यह दिखने में थोडा बहुत सही हो सकता है लेकिन इसके अतिरिक्त भी बहुत सी बाते हैं जो इन तीनों छंदों में भेद पैदा करते हैं... इसलिए छंद को समझने के लिहाज से तो ठीक है लेकिन छंद ज्ञान के लिए उपयुक्त नहीं है... अगर ऊपर दी गयी जानकारी में किसी प्रकार का विरोधाभास हो या त्रुटि हो तो क्षमा निवेदन...
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नवगीत:

http://www.deshbandhu.co.in/uploaded_files/cartoon/photo_776.jpg 
जब तक कुर्सी.... 
[14.jpg]
संजीव
*
जब तक कुर्सी, तब तक ठाठ...
*
नाच जमूरा, नचा मदारी.
सत्ता भोग, करा बेगारी.
कोई किसी का सगा नहीं है.
स्वार्थ साधने करते यारी.
फूँको नैतिकता ले काठ.
जब तक कुर्सी, तब तक ठाठ...
*
बेच-खरीदो रोज देश को.
साध्य मान लो लोभ-ऐश को.
वादों का क्या?, किया-भुलाया.
लूट-दबाओ स्वर्ण-कैश को.
झूठ आचरण सच का पाठ.
जब तक कुर्सी, तब तक ठाठ...
*
मन पर तन ने राज किया है.
बिजली गायब बुझा दिया है.
सच्चाई को छिपा रहे हैं.
भाई-चारा निभा रहे हैं.
सोलह कहो भले हो साठ.
जब तक कुर्सी, तब तक ठाठ...
*
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Meghdootam ..hindi poetry translation ..shlok..41 to 45 by Prof . C B shrivastava " vidagdh"..Mandla / jabalpur

कालिदास कृत मेघदूतम का हिंदी काव्यनुवाद
http://upload.wikimedia.org/wikipedia/hi/5/54/Meghdoot.jpg https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi_Q7g5wiTFciPkk7sV3opKgCgwdyfWsR8AYHt8bSVjhCyls7AFEVUkYFnmR5K7sDGnHH9T_4RGP6bpIbuVfdW4SZBlwJSgm1RhHPIpsjHyORX_z5UMR2xanIsyCC35OX8uaCSTDu2eUXme/s200/01.jpg

द्वारा प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव 'विदग्ध'
*

तां कस्यांचिद भवनवलभौ सुप्तपारावतायां
नीत्वा रात्रिं चिरविलसनात खिन्नविद्युत्कलत्रः
दृष्टे सूर्ये पुनरपि भवान वाहयेदध्वशेषं
मन्दायन्ते न खलु सुहृदामभ्युपतार्थकृत्याः॥१.४१॥

वहाँ घन तिमिर से दुरित राजपथ पर
रजनि में स्वप्रिय गृह मिलन गामिनी को
निकष स्वर्ण रेखा सदृश दामिनी से
दिखाना अभय पथ विकल कामिनी को
न हो घन ! प्रवर्षण , न हो घोर गर्जन
न हो सूर्य तर्जन , वहाँ मौन जाना

प्रणयकातरा स्वतः भयभीत जो हैं
सदय तुम उन्हें , अकथ भय से बचाना


तस्मिन काले नयनसलिअं योषितां खण्डितानां
शान्तिं नेयं प्रणयिभिर अतो वर्त्म भानोस त्यजाशु
प्रालेयास्त्रं कमलवदनात सोऽपि हर्तुं नलिन्याः
प्रत्यावृत्तस्त्वयि कररुधि स्यादनल्पभ्यसूयः॥१.४२॥

सतत लास्य से खिन्न विद्युत लतानाथ
वह निशि वहीं भवन छत पर बिताना
कहीं एक पर , जहाँ पारावतों को
सुलभ हो सका हो शयन का ठिकाना
बिता रात फिर प्रात , रवि के उदय पर
विहित मार्ग पर तुम पथारूढ़ होना
सखा के सुखों हेतु संकल्प कर्ता
है सच , जानते न कभी मन्द होना


गम्भीरायाः पयसि सरितश चेतसीव प्रसन्ने
चायात्मापि प्रकृतिसुभगो लप्स्यते ते प्रवेशम
तस्माद अस्याः कुमुदविशदान्य अर्हसि त्वं न धैर्यान
मोघीकर्तुं चटुलशफोरोद्वर्तनप्रेक्षितानि॥१.४३॥

तभी , सान्त्वना हेतु खण्डित प्रिया के
नयनवारि प्रेमी यथा पोंछते न !
हरे ओस आंसू , नलिन मुख कमल से
तरणि कर बढ़ा , तू अतः राह देना


तस्याः किंचित करधृतम इव प्राप्त्वाईरशाखं
हृत्वा नीलं सलिलवसनं मुक्तरोधोनितम्बम
प्रस्थानं ते कथम अपि सखे लम्बमानस्य भावि
ज्ञातास्वादो विवृतजघनां को विहातुं समर्था॥१.४४॥

मन सम तरल स्वच्छ जल में गंभीरा
नदी धार लेगी प्रकृत छबि तुम्हारी
कुमुद शुभ्र चंचल चपल मीन प्लुति दृष्टि
उसकी उपेक्षा न हो धैर्य धारी


त्वन्निष्यन्दोच्च्वसितवसुधागन्धसम्पर्करम्यः
स्रोतोरन्ध्रध्वनितसुभगं दन्तिभिः पीयमानः
नीचैर वास्यत्य उपजिगमिषोर देवपूर्वं गिरिं ते
शीतो वायुः परिणमयिता काननोदुम्बराणाम॥१.४५


उस क्षीण सलिला नदी को निरखकर
लगेगा तुम्हें ज्यों कोई कामिनी हो
जो वानीर रूपी झुकी उंगलियों से
सम्भाले सलिल नील रूपी वसन को
वसन तुम जिसे हर , अनावृत जघन कर
कठिन पाओगे मित्र , प्रस्थान पाना
विवृत जघन कामिनी को भला
ज्ञातरस किस रसिक से बना छोड़ जाना
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लेबल: hindi kavyanuvad, kalidas, meghdoot, pro chitra bhushan shrivastav 'vidagdh'

doha kahe muhavara: sanjiv

दोहा सलिला:
दोहा कहे मुहावरा...
संजीव 'सलिल'
*
दोहा कहे मुहावरा, सुन-गुन समझो मीत.
कम कहिये समझें अधिक, जन-जीवन की रीत.१.
*
दोहा संग मुहावरा, दे अभिनव आनंद.
'गूंगे का गुड़' जानिए, पढ़िये-गुनिये छंद.२.
*
हैं वाक्यांश मुहावरे, जिनका अमित प्रभाव.
'सिर धुनते' हैं नासमझ, समझ न पाते भाव.३.
*
'पत्थर पड़ना अकल पर', आज हुआ चरितार्थ.
प्रतिनिधि जन को छल रहे, भुला रहे फलितार्थ.४.
*
'अंधे की लाठी' सलिल, हैं मजदूर-किसान.
जिनके श्रम से हो सका भारत देश महान.५.
*
कवि-कविता ही बन सके, 'अंधियारे में ज्योत'
आपद बेला में सकें, साहस-हिम्मत न्योत.६.
*
राजनीति में 'अकल का, चकराना' है आम.
दक्षिण के सुर में 'सलिल', बोल रहा है वाम.७.
*
'अलग-अलग खिचडी पका', हारे दिग्गज वीर.
बतलाता इतिहास सच, समझ सकें मतिधीर.८.
*
जो संसद में बैठकर, 'उगल रहा अंगार'
वह बीबी से कह रहा, माफ़ करो सरकार.९.
*
लोकपाल के नाम पर, 'अगर-मगर कर मौन'.
सारे नेता हो गए, आगे आए कौन?१०?
*
'अंग-अंग ढीला हुआ', तनिक न फिर भी चैन.
प्रिय-दर्शन पाये बिना आकुल-व्याकुल नैन.११.
*
'अपना उल्लू कर रहे, सीधा' नेता आज.
दें आश्वासन झूठ नित, तनिक न आती लाज.12.
*
'पानी-पानी हो गये', साहस बल मति धीर.
जब संयम के पल हुए, पानी की प्राचीर.13.
*
चीन्ह-चीन्ह कर दे रहे, नित अपनों को लाभ.
धृतराष्ट्री नेता हुए, इसीलिये निर-आभ.14.
*
पंथ वाद दल भूलकर, साध रहे निज स्वार्थ.
संसद में बगुला भगत, तज जनहित-परमार्थ.15.
*
छुरा पीठ में भौंकना, नेता जी का शौक.
लोकतंत्र का श्वान क्यों, काट न लेता भौंक?16.
*
राजनीति में संत भी, बदल रहे हैं रंग.
मैली नाले सँग हुई, जैसे पावन गंग.17.
*
दरिया दिल हैं बात के, लेकिन दिल के तंग.
पशोपेश उनको कहें, हम अनंग या नंग?18.
*
मिला हाथ से हाथ वे, चला रहे सरकार.
भुला-भुना आदर्श को, पाल रहे सहकार.19.
*
लिये हाथ में हाथ हैं, खरहा शेर सियार.
मिलते गले चुनाव में, कल झगड़ेंगे यार.20.
*
गाल बजाते फिर रहे, गली-गली सरकार.
गाल फुलाये जो उन्हें, करें नमन सौ बार.21.
*
राम नाप जपते रहे,गैरों का खा माल.
राम नाम सत राम बिन, करते राम कमाल.22.
* 
'राम भरोसे' हो रहे, पूज्य निरक्षर संत.
'मुँह में राम बगल लिये, छुरियाँ' मिले महंत.२३.
*
'नाच न जानें' कह रहे, 'आंगन टेढ़ा' लोग.
'सच से आँखें मूंदकर', 'सलिल' न मिटता रोग.२४.
*
'दिन दूना'और 'रात को, चौगुन' कर व्यापार.
कंगाली दिखला रहे, स्याने साहूकार.२५.
*
'साढ़े साती लग गये', चल शिंगनापुर धाम.
'पैरों का चक्कर' मिटे, दुःख हो दूर तमाम.२६.
*
'तार-तार कर' रहे हैं, लोकतंत्र का चीर.
लोभतंत्र ने रच दिया, शोकतंत्र दे पीर.२७.
*
'बात बनाना' ही रहा, नेताओं का काम.
'बात करें बेबात' ही, संसद सत्र तमाम.२८.
*
'गोल-मोल बातें करें', 'करते टालमटोल'.
असफलता को सफलता, कहकर 'पीटें ढोल'.२९.
*
'नौ दिन' चलकर भी नहीं, 'चले अढ़ाई कोस'.
किया परिश्रम स्वल्प पर, रहे 'भाग्य को कोस'.३०.
*
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cartoon: Hindi

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बुधवार, 18 दिसंबर 2013

maha mrityunjay mantra

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बुधवार, 11 दिसंबर 2013

geet: man se man ke taa jodati -sanjiv

गीत:

मन से मन के तार जोड़ती.....

संजीव 'सलिल'
*

















*
मन से मन के तार जोड़ती कविता की पहुनाई का.
जिसने अवसर पाया वंदन उसकी चिर तरुणाई का.....
*
जहाँ न पहुँचे रवि पहुँचे वह, तम् को पिए उजास बने.
अक्षर-अक्षर, शब्द-शब्द को जोड़, सरस मधुमास बने..
बने ज्येष्ठ फागुन में देवर, अधर-कमल का हास बने.
कभी नवोढ़ा की लज्जा हो, प्रिय की कभी हुलास बने..

होरी, गारी, चैती, सोहर, आल्हा, पंथी, राई का
मन से मन के तार जोड़ती कविता की पहुनाई का.
जिसने अवसर पाया वंदन उसकी चिर तरुणाई का.....
*
सुख में दुःख की, दुःख में सुख की झलक दिखाकर कहती है.
सलिला बारिश शीत ग्रीष्म में कभी न रूकती, बहती है. 
पछुआ-पुरवैया होनी-अनहोनी गुपचुप सहती है.
सिकता ठिठुरे नहीं शीत में, नहीं धूप में दहती है.

हेर रहा है क्यों पथ मानव, हर घटना मन भाई का?
मन से मन के तार जोड़ती कविता की पहुनाई का.
जिसने अवसर पाया वंदन उसकी चिर तरुणाई का.....
*
हर शंका को हरकर शंकर, पियें हलाहल अमर हुए.
विष-अणु पचा विष्णु जीते, जब-जब असुरों से समर हुए.
विधि की निधि है प्रविधि, नाश से निर्माणों की डगर छुए.
चाह रहे क्यों अमृत पाना, कभी न मरना मनुज मुए?

करें मौत का अब अभिनन्दन, सँग जन्म के आई का.
मन से मन के तार जोड़ती कविता की पहुनाई का.
जिसने अवसर पाया वंदन उसकी चिर तरुणाई का.....
**********************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
Acharya Sanjiv S
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muktak: sanjiv

मुक्तक सलिला:
संजीव
*
नाग नाथ को बिदा किया तो साँप नाथ से भी बचना
दंश दिया उसने तो इसने भी सीखा केवल डँसना
दलदल दल का दल देता है जनमत को सत्ता पाकर-
लोक शक्ति नित रहे जागृत नहीं सजगता को तजना।
*
परिवर्तन की हवा बह रही इसे दिशा-गति उचित मिले
बने न अंधड़, कुसुम न जिसमें जन-आशा का 'सलिल' खिले।
मतदाता कर्तव्यों को अधिकारों पर दे वरीयता-
खुद भ्रष्टाचारी होकर नेता से कैसे करें गिले?
*
ममो सोनिया राहुल डूबे, हुई नमो की जय-जयकार
कमल संग अरविन्द न लेकिन हाल एक सा देखो यार
जनता ने दे दिया समर्थन पर न बना सकते सरकार-
कैसी जीत मिली दोनों को जिसमें प्रतिबिंबित है हार
*
वसुंधरा शिव रमन न भूलें आगे कठिन परीक्षा है
मँहगाई, कर-भार, रिश्वती चलन दे रहा शिक्षा है
दूर करो जन गण की पीड़ा, जन-प्रतिनिधि सुविधा छोडो-
मतदाता जैसा जीवन जी, सत्ता को जन से जोड़ो
*

Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'
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muktak: GAHOI -sanjiv

​
मुक्तक :
गहोई
कहो पर उपकार की क्या फसल बोई?
मलिनता क्या ज़िंदगी से तनिक धोई?
सत्य-शिव-सुन्दर 'सलिल' क्या तनिक पाया-
गहो ईश्वर की कृपा तब हो गहोई।।
*
​कहो किसका कब सदा होता है कोई?

कहो किसने कमाई अपनी न खोई?

कर्म का औचित्य सोचो फिर करो तुम-

कर गहो ईमान तब होगे गहोई।।
*

सफलता कब कहो किसकी हुई गोई?

श्रम करो तो रहेगी किस्मत न सोई.

रास होगी श्वास की जब आस के संग-

गहो ईक्षा संतुलित तब हो गहोई।।
*

कर्म माला जतन से क्या कभी पोई?

आस जाग्रत रख हताशा रखी सोई?

आपदा में धैर्य-संयम नहीं खोना-

गहो ईप्सा नियंत्रित तब हो गहोई।।
*

सफलता अभिमान कर कर सदा रोई.

विफलता की नष्ट की क्या कभी चोई..

प्रयासों को हुलासों की भेंट दी क्या?

गहो ईर्ष्या 'सलिल' मत तब हो गहोई।
*
(गोई = सखी, ईक्षा = दृष्टि, पोई = पिरोई / गूँथी,
ईप्सा = इच्छा,
​चोई = जलीय खरपतवार)



​



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stuti: namo dev

​स्तुति :

नमो देव…
संजीव
*
नमो देव निराकार सकल सृष्टिधारी
निर्गुण से सगुण हुए सद्गुण अवतारी
नाद-ताल-थाप मधुर, अनहद अविकारी
रव-तरंग घर्षण, रस वर्षण जग-तारी
कण-तृण, जड़-चेतन रच प्रगटे साकारी
पंचतत्व पावन हे! द्युति-युति आगारी
धर्म-कर्म-मर्मी विधि-हरि-हर छवि न्यारी
शारद-श्री-शक्ति तुम्हीं, रची सृष्टि सारी
ज्ञान-ध्यान दाता प्रभु! संयम आचारी
नटवर-नटराज देव! अक्षर आकारी
वेद छंद अलंकार भाव छवि निहारी
गीता कुरआन ग्रंथ बाइबिल विहारी
आदि-अंत दिग्दिगंत हम सब आभारी
दया क्षमा करुणा हम चाहते तिहारी
***
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मंगलवार, 10 दिसंबर 2013

doha salila: sanjiv

​दोहा सलिला:
अभिकल्पन रूपांकन, संरचना का मूल
गुणवत्ता निर्माण का, प्राण न जाएँ भूल
*
रेखांकन ही तय करे, रूप-माप-आकार
सजक पर्यवेक्षण अगर, सपना हो साकार
*
सूक्ष्म गौड़ बारीकियाँ, अधिक चाहतीं ध्यान
बाधाओं का कीजिये, 'सलिल' पूर्व अनुमान
*
अनसोची कठिनाई का, करे सामना धैर्य
समाधान सम्यक मिले, रचें सृष्टि निर्वेर्य
*
ब्रम्हा-हरि-शिव पुजे कर, रचना-पालन-नाश
अभियंता यह सब करे, जग सच माने काश
*
धरती के नव तीर्थ हैं, 'सलिल' नये निर्माण
अभियंता नित फूँकते, पत्थर में भी प्राण
*
दृढ़ संरचना प्रमुख है, सज्जा मानें गौड़
होड़ न स्पर्धा करें, व्यर्थ न चलिये दौड़
*
शशि-मंगल-सागर रहे, अभियंतागण नाप
सृष्टि-स्रजन के राज भी, चाह रहे लें माप
*
कल से कल को जोड़ते, अभियंता ही आज
कूल-किनारे एक कर, क्या जाने किस व्याज?
*
कल दे कल की चाह में, तोड़ें बाधा-पाश
दिग्दिगंत सँग नापते, अभियंता आकाश
*
सामाजिक अभियांत्रिकी, समरस रचे समाज
मिटे अंध-श्रद्धा 'सलिल', शांति कर सके राज
*
सॉफ्टवेयर अभियांत्रिकी, है युग की पहचान
करे कठिन को सरल यह, देकर 'सलिल' निदान
*
सूक्ष्म काल-गणना करे, ज्योतिष वर्षों-वर्ष
पुष्टि करे विज्ञान भी, भारत का उत्कर्ष
*
समझ वेद-विज्ञान को, पश्चिम उन्नत आज
पिछड़ गये हम पूजकर, 'सलिल' हुआ सच-राज
*
भारत की खोजें हुईं, क्यों पश्चिम के नाम?
रचें नया इतिहास हम, खोजें सत्य तमाम
*
जगवाणी हिंदी करे, अंतरिक्ष में घोष
नहीं हिन्द में मान है, क्यों-किसका है दोष?
*
सुर-वाणी है संस्कृत, जनवाणी हैं अन्य
जगवाणी हिंदी 'सलिल', सचमुच दिव्य अनन्य
*
अंग्रेजी लिपिहीन है, ली रोमन से भीख
दंभ श्रेष्ठता का करे, दे अन्यों को सीख
*
हिंदी वर्णोच्चार है, ध्वनियों के अनुसार
जो बोलें वह लिख-पढ़, रीति-नीति व्यवहार*
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bharteey do samoohon ke vanshaj sanjiv-sadhna

अनुवांशिक अभियांत्रकी % तकनीक ने बदलीं मान्यताएँ
 अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल' - डॉ. साधना वर्मा
 
अनुवांशिक अभियांत्रिकी की नवीनतम शोधों ने तथ्यों, साक्ष्यों, जैविक विकास  तथा तकनीकी विश्लेषणों से भारत की भारतीयता, अखण्‍डता व संप्रभुता को मजबूती प्रदान करनेवाले तीन शोधपरक निष्कर्ष प्रस्तुत किये हैं। सेंटर फॉर सेल्‍युलर एण्‍ड मॉलिक्‍यूलर बायोलॉजी हैदराबाद द्वारा अनुवांशिकी (जेनेटिक्‍स)  के आधार पर प्रथम शोध का निष्कर्ष है कि आर्य भारत में बाहर से नहीं आये थे। एक अन्य अध्‍ययन में दो साल पहले डीएनए के विस्‍तृत परीक्षण तथा विश्लेषण पश्चात् पाया गया था कि बहुसंख्‍यक भारतीयों के पूर्वज दक्षिण भारतीय दो आदिवासी समुदाय हैं। मानव विकास का यह चौंकानेवाला निष्कर्ष पाश्चात्य शोधकों की इस धारणा को निर्मूल करता है को आर्य भारत में आक्रांता थे। तीसरी शोध का निष्कर्ष भगवान श्रीकृष्‍ण और कुरुक्षेत्र में महाभारत युद्ध की सत्यता प्रमाणित करता है।
 
भारतीय उपमहाद्वीप के सभी वासियों का दो समूहों के वंशज होने का अकाट्य सत्य बाद यह धर्म] जाति] संप्रदाय व भाषा के आधार पर भेद&भाव] टकराव] विवाहादि को लेकर हत्याओं] आरक्षण और अन्य सामाजिक&राजनैतिक गतिविधियों के औचित्य पर प्रश्नचिन्ह लगता है। भारतीय उपमहाद्वीप के निवासियों को जड़ों की ओर लौटने का संकेत देते ये अनुसंधानपरक वैज्ञानिक चिंतन ईश्‍वरीय सृष्‍टि की काल्‍पनिक अवधारणा को चुनौती देते हुए भारतीय समाज को बदल पाएंगे। प्रसिद्ध जीव विज्ञानी चार्ल्‍स डारविन ने उन्‍नीसवीं सदी के मध्‍य में विकासवाद के सिद्धांत को स्‍थापित करते हुए बताया था कि पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और यहां तक की मनुष्‍य भी हमेशा से आज जैसे नहीं रहे हैं, बल्‍कि वे बेतरतीब बदलाव (रैन्‍डम म्‍यूटेशन) और प्राकृतिक चयन (नेचुरल सिलेक्‍शन) द्वारा निम्‍नतर से उच्‍चतर जीवन की ओर विकसित होते रहे हैं। उन्‍होंने इस बात पर भी जोर दिया की जिस खास प्रजाति से मानव का विकास हुआ, उसके संबंधी आज भी अफ्रीका में जीवित हैं। इसलिए इस सिद्धांत को मानने में किसी सवर्ण में यह हीनता-बोध पैदा नहीं होना चाहिए कि हमारे पुरखे आदिवासी थे।
चार्ल्‍स डारविन ने एच.एम.एस बीगल जहाज पर सवारी करते हुए दुनियाभर की सैर की और कई जीव-जंतुओं का इस दृष्‍टि से अध्‍ययन किया, जिससे सजीवों में परिवर्तन की खोज की जा सके। लिहाजा बीगल यात्रा के दौरान वे इक्‍वेडॉर तट के नजदीक गैलापैगोस द्वीप समूह के कई द्वीपों पर गए। यहां उन्‍हें फिंच नाम की चिड़िया के प्रसंग में विशेष बात यह नजर आई कि यह चिड़िया पाई तो हरेक द्वीप में जाती है, लेकिन इनमें शारीरिक स्‍तर पर तमाम भिन्‍नताएं हैं। विशेष तौर से इनकी चोचों की आकृति में बदलाव प्राकृतिक चयन और आहारजन्‍य उपलब्‍धता के आधार पर डारविन ने रेखांकित किया। बाद मे यें पक्षी अलग-अलग स्‍थानों पर इतने भिन्‍न रुपों में विकसित हो गए कि इन्‍हें मनुष्‍यों ने नई-नई प्रजातियों के रुप में ही जाना।
समस्‍त भारतीय दो आदिवासी समूहों की संतानें हैं, यह भारत में किया गया ऐसा अंनूठा अध्‍ययन है जिसमें शोधकर्ताओं ने भारतीय सभ्‍यता की पहचान मानी जाने वाली जाति व्‍यवस्‍था पर आर्य आक्रमणकारियों के सिद्धांत को सर्वथा नजरअंदाज किया है। अध्‍ययन दल के निदेशक लालजी सिंह ने इस प्रसंग का खुलासा करते हुए स्‍पष्‍ट भी किया कि आर्य व द्रविड़ (अनार्य) के बारे में अलग-अलग बात करने की जरुरत नहीं है। उन्‍होंने कहा भी जाति सूचक रुप में पहली बार ‘आर्य' शब्‍द का प्रयोग जर्मन विद्वान मेक्‍समुलर ने किया था। वरना हमारी जातियों का प्रादुर्भाव तो देश के कबिलाई समूहों से हुआ है।
‘सेंटर फॉर सेल्‍युलर एंड मॉलीक्‍युलर बायोलॉजी' (सीसीएमबी) हैदराबाद के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस अध्‍ययन में बताया गया है कि दक्षिण भारतीय पूर्वज 65 हजार वर्ष पूर्व और उत्तर भारतीय पूर्वज 45 हजार वर्ष पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप में आए थे। देश की 1.21 अरब जनसंख्‍या, 4600 अलग-अलग जातियों, धर्मों व बोलियों के आधार पर विभाजित हैं, बावजूद उनमें गहरी अनुवांशिक समानताएं हैं। लिहाजा निम्‍नतम और उच्‍चतम जातियों के पुरखे और उनके रक्‍त समूह एक ही हैं। गोया, यह खोज इस पारंपरिक अवधारणा को अस्‍वीकारती है कि सभी जीव प्रजातियां अपरिवर्तन हैं और ये ईश्‍वरीय रचनाएं हैं।
हालांकि इतिहास की गतिशीलता को मानव समाज की जैविक प्रवृत्तियों से तलाशने की कोशिश मनुष्‍य के आदि पूर्वज ‘‘आस्‍टेलोपिथिक्‍स रामिदस'' की खोज के रुप में ड़ेढ़ दशक पूर्व सामने आ चुकी है। धरती के इस पहले मनुष्‍य की खोज इथियोपिया क्षेत्र के आरामिस के शुरुआती प्‍लायोसिन चट्‌टानों में मिले रामिदस प्रजाति के सत्तरह सदस्‍यों के दांतो, खोपड़ी के टुकड़ों और अन्‍य अवशेषों की उम्र 45 लाख वर्ष से अधिक आंकी गई है। इथियोपिया के अफारी लोगों की भाषा में ‘‘रामिद'' का अर्थ होता है मूल या जड़। रामिदस के अवशेषों के खोज कर्ता वैज्ञानिक जिसे मनुष्‍य और चिपांजी जैसे नर वानरों के समान पूर्वज तथा अब तक ज्ञात सबसे प्राचीन मानव पूर्वज के जीवाश्‍म मानते हैं। वैज्ञानिको का दावा है कि यदि यह सही है तो इसे इंसान की मूल प्रजाति मानना होगा।
इस शोध की बड़ी उपलब्‍धि अंग्रेजों द्वारा प्रचलन में लाई गई आर्य-द्रविड़ अवधारणा भी है। जिसके तहत बड़ी चतुराई से अंग्रेजों ने कल्‍पना गढ़कर तय किया कि आर्य भारत में बाहर से आए। मसलन आर्य विदेशी थे। पाश्‍चात्‍य इतिहास लेखकों ने पौने दो सौ साल पहले जब प्राच्‍य विषयों और प्राच्‍य विद्याओं का अध्‍ययन शुरु किया तो उन्‍होंने कुटिलतापूर्वक ‘आर्य' शब्‍द को जातिसूचक शब्‍द के दायरे में बांध दिया। ऐसा इसलिए किया गया जिससे आर्यों को अभारतीय घोषित किया जा सके। जबकि वैदिक युग में ‘आर्य' और ‘दस्‍यु' शब्‍द पूरे मानवीय चरित्र को दो भागों में बांटते थे। प्राचीन संस्‍कृत साहित्‍य में भारतीय नारी अपने पति को ‘आर्य-पुत्र' अथवा ‘‘आर्य-पुरुष'' नाम से संबोधित करती थी। इससे यह साबित होता है कि आर्य श्रेष्‍ठ पुरुषों का संकेतसूचक शब्‍द था। ऋग्‍वेद, रामायण, महाभारत, पुराण व अन्‍य प्राचीन ग्रंथों में कहीं भी आर्य शब्‍द का प्रयोग जातिवाचक शब्‍द के रुप में नहीं हुआ है। आर्य का अर्थ ‘श्रेष्‍ठि' अथवा ‘श्रेष्‍ठ' भी है। वैसे भी वैदिक युग में जाति नहीं वर्ण व्‍यवस्‍था थी।
इस सिलसिले में डॉ. रामविलास शर्मा का कथन बहुत महत्‍वपूर्ण है, जर्मनी मेंं जब राष्‍ट्रवाद का अभ्‍युदय हुआ तो उनका मानना था कि हम लोग आर्य हैं। इसलिए उन्‍होने जो भाषा परिवार गढ़ा था उसका नाम ‘इंडो-जर्मेनिक' रखा। बाद में फ्रांस और ब्रिटेन वाले आए तो उन्‍होंने कहा कि ये जर्मन सब लिए जा रहे हैं, सो उन्‍होंने उसका नाम ‘इंडो-यूरोपियन' रखा। मार्क्‍स 1853 में जब भारत संबंधी लेख लिख रहे थ,े उस समय उन्‍होंने भारत के लिए लिखा है कि यह देश हमारी भाषाओं और धर्मों का आदि स्‍त्रोत है। इसलिए 1853 में यह धारणा नहीं बनी थी कि आर्य भारत में बाहर से आए। 1850 के बाद जैसे-जैसे ब्रिटिश साम्राज्‍य सुदृढ़ हुआ और फ्रांसीसी व जर्मन भी यूरोप एवं अफ्रीका में अपना साम्राज्‍य विस्‍तार कर रहे थे तब उन्‍हें लगा कि ये लोग हमसे प्राचीन सभ्‍यता वाले कैसे हो सकते हैं, तब उन्‍होंने यह सिद्धांत गढ़ा कि एक आदि इंडो-यूरोपियन भाषा थी, उसकी कई शाखाएं थीं। एक शाखा ईरान होते हुए यहां पर पहुंची और फिर इंडो-एरियन जो थी, वह इंडो-ईरानियन से अलग हुई और फिर संस्‍कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिंदी यह सिलसिला चला। इस कारण आर्य भारत के मूल निवासी थे, यह गलत है। भाषाओं के इतिहास से भी इसकी पुष्‍टि नहीं होती। अंततः रामविलास शर्मा ने अपने शोधों के निचोड़ में पाया कि आर्य उत्तर भारत के ही आदिवासी थे। अर्थात ज्‍यादातर भारतीयों के जन्‍मदाता आदिवासी समूह थे।
बंगाली इतिहासकार ए.सी.दास का मानना है कि आर्यों का मूल निवास स्‍थान ‘सप्‍त-सिंधु' या पंजाब में था। सप्‍त-सिंधु में सात नदियां बहती थीं सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, व्‍यास, सतलुज और सरस्‍वती। आर्य सप्‍त सिंधु से ही पश्‍चिम की ओर गए और पूरी दुनिया में फैले। सप्‍त-सिंधु के उत्तर में कश्‍मीर की सुंदर घाटी, पश्‍चिम में गांधार प्रदेश, दक्षिण में राजपूताना, जो उस समय रेगिस्‍तान नहीं था और पूर्व में गंगा का मैदान था। सप्‍त-सिंधु से गांधार और काबुल के मार्ग से आर्यों के समूह पश्‍चिम में यूरोप और रुस गए।
पाश्‍चात्‍य और भारतीय विद्वान भाषा वैज्ञानिक समरुपता के कारण ऐसी अटकलें लगाए हुए हैं कि आर्य विदेशों से भारत आए। गंगाघाटी से आर्यावर्त तक की भाषाएं एक ही आर्य परिवार की आर्य भाषाएं हैं। इसी कारण इन भाषाओं में लिपि एवं उच्‍चारण की भिन्‍नता होने के बावजूद अपभ्रंशी समरुपता है। इससे यह लगता है कि आदिकाल में एक ही परिवार की भाषाएं बोलने वाले पूर्वज कहीं एक ही स्‍थान पर रहते होंगे जो सप्‍त-सिंधु ही रहा होगा। भाषा वैज्ञानिक समरुपता किसी हद तक परिकल्‍पना और अनुमान की बुनियाद पर भी आधारित होती है और अब भाषा वैज्ञानिकों की यह अवधारणा भी बन गई है कि भाषाई एकरुपता किसी जाति की एकरुपता साबित नहीं हो सकती। इसलिए यूरोपीय जातियों के साथ भारतीय आर्यों को जोड़ना कोरी कल्‍पना है। वैसे भी आर्य शब्‍द का प्रयोग संस्‍कृत साहित्‍य में सबसे ज्‍यादा हुआ है और संस्‍कृत का परिमार्जित विकास भी क्रमशः भारत में ही हुआ है। इसलिए आयोंर् का उत्‍थान, आर्यों का दैत्‍यों में विभाजन और उनकी सभ्‍यता, संस्‍कृति और उनका पारंपरिक विस्‍तार के सूत्रपात के मूल में भारत ही है। इसीलिए भारत आर्यावर्त कहलाया आर्य भारत के ही मूल निवासी थे इस तारतम्‍य में 1994 में भी एक अध्‍ययन हुआ था। जिसके जनक भारतीय अमेरिकी विद्वान थे। इस अध्‍ययन ने दावा किया था कि भारत से ही आर्य पश्‍चिम-एशिया होते हुए यूरोप तक पहुंचे। इस अध्‍ययन का आधार पुरातात्‍विक अनुसंधानों, भू-जल सर्वेक्षण, उपग्रह से मिले चित्र, प्राचीन शिल्‍पों की तारीखें तथा ज्‍यामिति एवं वैदिक गणित रहे थे।
इस अध्‍ययन दल में अमेरिका की अंतरिक्ष संस्‍था नासा के तात्‍कालिक सलाहकार डॉ. एन.एस.राजाराम, डेविड फ्रांवले, जार्ज फयूरिस्‍टीन, हैरी हिक्‍स, जैम्‍स शेफर और मार्क केनोयर शामिल थे। भारतीय अमेरिकी इतिहासविदों ने सच की तह तक पहुचने के लिए खोजबीन की चौतरफा रणनीति अपनाई। प्रमाणों के लिए बीसवीं शताब्‍दी के उपलब्‍ध अत्‍याधुनिक संसाधनों का सहारा लिया। डॉ. राजाराम ने अपना अभिमत प्रकट करते हुए कहा है कि 19 वीं शताब्‍दी के भाषाशास्‍त्र के सिद्धांत, ऐसा ऐतिहासिक परिदृश्‍य खींचते हैं, जो पिछले दो हजार साल की भारतीय परंपरा को खारिज करने की सलाह देता है। दूसरी ओर भारतीय अमेरिकी इतिहासज्ञों का मत है कि परंपराओं को स्‍वीकार किया जाना चाहिए और इतिहास के मॉडलों को सुधारा जाना चाहिए। यदि नए सबूत उनके विपरीत हों तो उन मॉडलों को नामंजूर भी किया जा सकता है। इस आधार को सामने रखकर उन्‍होंने भारतीय इतिहास की जड़ों की ओर लौटना शुरु किया तो पाया कि महाभारत का समय ईसा से 3102 साल पहले के आसपास का था। इस काल का निर्धारण कई तरह से किया गया। महाभारत के इस काल को मिथक नहीं माना जा सकता क्‍योंकि उपग्रह से मिले चित्रों से पता चलता है कि सरस्‍वती नदी 1900 ईसा पूर्व सूख गई थी। महाभारत के वर्णनों में सरस्‍वती का जिक्र मिलता है। लिहाजा यह भी नहीं माना जा सकता कि भारतीयों ने ज्‍यामिति, यूनानियों से उधार ली थी। हड़प्‍पा के नगरों का नियोजन और वास्‍तुशिल्‍प उच्‍चकोटि के ज्‍यामितिशास्‍त्र का प्रतिफल हैं। इस प्रमेय को पाइथागोरस से दो हजार साल पहले बैधायन ने अपने सुलभ सूत्र में कर दिया था।
सुलभ सूत्र में हवन-कुंड की जो ज्‍यामिति दी गई है, वह तीन हजार ईसा पूर्व के हड़प्‍पा सभ्‍यता के अवशेषों में पाई जाती है। सूत्रों के रचयिता अश्‍वालयन ने महाभारत के प्राचीन ऋषियों का उल्‍लेख किया है और इन्‍हीं सूत्रों को हड़प्‍पा सभ्‍यता के समय साकार रुप में पाया गया। हड़प्‍पा के शहर 2700 ईसा पूर्व में जिस समय अपने गौरव के चरम पर थे, उससे कहीं पहले महाभारत का युद्ध हुआ था।
इन सब ठोस प्रमाणों के आधार पर इन इतिहासकारों ने प्राचीन भारतीय इतिहास के सूत्र 3102 ईसा पूर्व में हुए महाभारत से पकड़ना शुरु किए। इससे यह तर्क अपने आप खारिज हो जाता है कि सभ्‍यता का अंकुरण तीन हजार ईसा पूर्व में मेसोपोटामिया से हुआ। इससे करीब एक हजार साल पहले तो ऋग्‍वेद पूर्ण हो गया था। ऋग्‍वेद काल की शुरुआत इससे कहीं पहले हो गई थी। लोकमान्‍य तिलक और डेविड फ्रांवले जैसे वैदिक विद्वानों ने ऋग्‍वेद में छह हजार ईसा पूर्व की तारीखों के संकेत भी खोजे हैं।
डॉ. राजाराम ऋग्‍वेद काल को 4600 ईसा पूर्व मानने में कोई कठिनाई महसूस नहीं करते। यह वह समय था जब मान्‍धात्र नाम के भारतीय सम्राट ने ध्रुयू कहलाने वाले लोगों पर उत्तर-पश्‍चिम में कई आक्रमण किए। इन आक्रमणों के कारण उत्तर-पश्‍चिम से भारी संख्‍या में पलायन हुआ और ये लोग मध्‍य-एशिया और यूरोप तक गए। मध्‍य-एशिया, यूरोप और भारत के बीच भाषाई और मिथकीय समानताओं के लिए इसे प्रमुख कारण माना जा सकता है। भारत का उत्तर-पश्‍चिम का इलाका प्राचीन काल में उथल-पुथल का केन्‍द्र था।
मान्‍धात्र के बाद राजा सूद को धु्रयू और दूसरे लोगों से जूझना पड़ा। फिर तेन राजाओं की लड़ाइयां भी हुईं, जिनका ऋग्‍वेद के सांतवें खण्‍ड में वशिष्‍ठ ने भी वर्णन किया है। प्राचीन इतिहास का यह महत्‍वपूर्ण दौर था। सूद राजा की लड़ाई ने पृथुपठवा, परसू और एलिना लोगों को खदेड़ दिया। बाद में परसू लोग फारसी कहलाए और एलिना लोग यूनानी कहलाए। सूद के दूसरे प्रतिद्वंद्वियों में पक्‍था और बलहन भी शामिल थे। बाद में उनकी पीढ़ियाँ पठान या पख्‍तूनी और बलूची कहलाईं। भाषाई और संस्‍कृति विश्‍लेषक श्रीकांत तलगरी ने भी इसका वर्णन किया है। इन तथ्‍यों के उजागर होने से साबित हुआ कि यह सिद्धांत एकदम खोखला है कि आर्यों ने भारत पर आक्रमण किया था। ये प्रमाण और धटनाएं सिद्धांत के एकदम विपरित यह गवाही देती हैं कि आर्य जाति का मूल स्‍थान भारत था और फिर उनकी जड़ें यूरोप तक फैले वैदिक भूभाग में राजनैतिक उथल-पुथल के कारण आर्यों का यहां से पलायन हुआ था न कि वे बाहर से आक्रांता के रूप में यहां आए थे।
अमेरिकी मानव वैज्ञानिक और पुरातत्‍ववेत्ता डॉ. जे. मार्क केनोयर भी हड़प्‍पा में खुदाई के दौरान मिले अवशेषों के बाद लगभग यही दृष्‍टिकोण प्रकट करते हैं। डॉ. केनोयर का मत है कि ‘भारोपीय';इंडो-यूरोपियनद्ध तथा ‘भारतीय आर्य' ;इंडा- आर्यनद्ध की परिकल्‍पनाओं के पीछे यूरोपीय विद्वानों का उद्‌देश्‍य अपनी श्रेष्‍ठता प्रतिपादित करना था और इसके लिए उन्‍हें स्‍थितियां भी अनुकूल मिलीं। क्‍योंकि तत्‍कालीन भारतीय मानस हीन भावना से इतना अधिक ग्रस्‍त था कि वह स्‍वयं को पश्‍चिम से किसी न किसी रुप में जोड़कर ही आत्‍मगौरव महसूस करने लगा था।
दरअसल पिछली शताब्‍दी के तीसरे दशक में भारतीय अन्‍वेषणकर्ता डी.आर.साहनी और आर.डी. बनर्जी द्वारा क्रमशः हड़प्‍पा और मोहनजोदड़ों की खोज से पहले तक पश्‍चिमी विद्वान यही कहते आए थे कि बाहर से आए आर्यों ने भारत को सभ्‍यता से परिचित कराया। हालांकि इन खोजों से पश्‍चिमी विद्वानों का यह दावा ध्‍वस्‍त हो गया, फिर भी यही मान्‍यता बनी रही कि आर्य बाहर से आए और उन्‍होंने सिंधु घाटी के मूल निवासियों को दक्षिण एवं पूर्व की ओर खदेड़ दिया। साथ ही यह अवधारणा भी गढ़ी कि आर्य बर्बर थे। नतीजतन हड़प्‍पावासी द्रविड़ उनके सामने टिक नहीं पाए। क्‍योंकि आर्यों के पास अश्‍वों की गति और लोहे की शक्‍ति थी। जबकि हड़प्‍पा के लोग इनसे अपरिचित थे।
डॉ केनोयर इस अवधारणा को निरस्‍त करते हुए कहते हैं कि हड़प्‍पा सभ्‍यता से जुड़े विभिन्‍न स्‍थलों पर 3100 वर्ष से भी अधिक पुराने लोहे मिले हैं। जबकि बलूचिस्‍तान में सबसे पुराना लोहा लगभग पौने तीन हजार साल से भी पहले का पाया गया है। इसी तरह सिंधु घाटी में घोड़ों के अवशेष प्राप्‍त हुए हैं, जो इस तथ्‍य को झुठलाते हैं कि हड़प्‍पावासी अश्‍वों से परिचित नहीं थे। डॉ. केनोयर ने माना है कि अनेक धर्मों और जातियों के लोग हड़प्‍पा में एक साथ रहते थे। ‘आर्य' शब्‍द की अर्थ-व्‍यंजना ‘सुसभ्‍य' और ‘सुसंस्‍कृत' से जुड़ी थी। फलस्‍वरुप जिनका उच्‍च रहन-सहन व शासन व्‍यवस्‍था में हस्‍तक्षेप था वे ‘आर्य' और जो दबे-कुचले व सत्ता से दूर थे, ‘‘अनार्य‘‘ हुए।
अब जो आर्यों के ऊपर अनुवांशिकी के आधार पर नया शोध सामने आया है, उससे तय हुआ है कि भारतीयों की कोशिकाओं का जो अनुवांशिकी ढांचा है, वह बहुत पुराना है। पांच हजार साल से भी ज्‍यादा पुराना है। तब यह कहानी अपने आप बे-बुनियाद साबित हो जाती है कि भारत के लोग 3.5 हजार साल पहले किसी दूसरे देश से यहां आए थे। यदि आए होते तो हमारा अनुवांशिकी ढांचा भी 3.5 हजार साल से ज्‍यादा पुराना नहीं होता, क्‍योंकि जब वातावरण बदलता है तो अनुवांशिकी ढांचा भी बदल जाता है। इस तथ्‍य को इस उदाहरण से समझा जा सकता है। जैसे हमारे बीच कोई व्‍यक्‍ति आज अमेरिका या ब्रिटेन जाकर रहने लग जाए तो उसकी जो चौथी-पांचवीं पीढ़ी होगी, उसका सवा-डेढ़ सौ साल बाद अनुवांशिकी सरंचना अमेरिकी या ब्रिटेन निवासी जैसी होने लग जाऐगी। क्‍योंकि इन देशों के वातावरण का असर उसकी अनुवांशिकी सरंचना पर पड़ेगा। इस शोध के बाद देखना यह है कि दुनियाभर के जिज्ञासुओं को आर्यों के मूल निवास स्‍थान का जो सवाल मथ रहा है उसका कोई परिणाम निकलता है अथवा नहीं ?
सिंधु घाटी की सभ्‍यता प्राचीन नगर सभ्‍यताओं में एकमात्र ऐसी सभ्‍यता थी जो भगवान महावीर और महात्‍मा गांधी के अंहिसावादी दर्शन की विलक्षणता व महत्ता को रेखांकित करती है। मिश्र से लेकर सुमेरू तक की प्राचीन सभ्‍यताओं से ऐसे अनेक अवशेष मिले हैं, जिनमें राजा अथवा उसके दूत लोगों को मारते-पीटते दिखाए गए हैं। जबकि इसके विपरीत सिंधु घाटी की सभ्‍यता में ऐसा एक भी अवशेष नहीं मिला, इससे जाहिर होता है कि दुनिया की यह एकमात्र ऐसी अद्वितीय सभ्‍यता थी, जहां आमजन पर अनुशासन तथा अपराध व अपराधियों पर नियंत्रण के लिए सैन्‍य-शक्‍ति का सहारा नहीं लिया जाता था। शासन-व्‍यवस्‍था की इस अनूठी पद्वति के विस्‍तृत अध्‍ययन की दरकार है।
डॉ. केनोयर का मानना था कि प्राचीन भारतीय सभ्‍यता केवल सिंधु घाटी में ही नहीं पनपी, बल्‍कि सिंधु घाटी की सभ्‍यता के समांनातर एक अन्‍य सभ्‍यता घाघरा-हाकड़ा में भी पनपी। ज्ञातव्‍य है कि सरस्‍वती इसी घाघरा की शाखा थी। उन्‍होंने दावा किया था कि हरियाणा स्‍थित राखीगढ़ी तथा पाकिस्‍तान के गनवेरीवाला आदि क्षेत्रों में हुए अन्‍वेषण कार्यों में इस तथ्‍य की पुष्‍टि हुई है।
प्रागैतिहासिक भारत में राजनीति और धर्म, भिन्‍न नहीं थे। हड़प्‍पा-मोहन जोदड़ो आदि राज्‍यों के शासक अपने रक्‍त संबंधियों अथवा रिश्‍तेदारों के साथ राज-काज चलाते थे। यह व्‍यवस्‍था धर्म से संचालित व नियंत्रित थी। शासक कुटुम्‍ब में जब सदस्‍यों की जनसंख्‍या बढ़ जाती थी तो उनमें से एक समूह आमजनों की टोली के साथ कहीं और जा बसता था। इन कारणों से भी एक ही भाषा-समूहों का विस्‍तार हुआ। इतिहास हमारे मस्‍तिष्‍क की आंख खोल देने वाला सत्‍य होता है। इसलिए इनकी रचना में ज्ञान की समस्‍त देन का उपयोग होना चाहिए। इस नाते भारतवंशी ब्रितानी शोधकर्ता डॉ. नरहरि अचर ने खगोलीय घटनाओं और पुरातात्‍विक व भाषाई साक्ष्‍यों के आधार पर दावा किया है कि भगवान कृष्‍ण हिन्‍दू मिथक व पौराणिक कथाओं के दिव्‍य व काल्‍पनिक पात्र न होकर एक वास्‍तविक पात्र थे। डॉ. अचर ब्रिटेन में टेनेसी के मेम्‍फिस विश्‍वविद्यालय में भौतिकशास्‍त्र के प्राध्‍यापक हैं। डॉ. अचर की इस उद्‌घोषणा से जुड़े शोध-पत्र में खगोल विज्ञान की मदद से महाभारत युद्ध की घटनाओं की कालगणना की है। इस शोध-पत्र का अध्‍ययन जब ब्रिटेन में न्‍यूक्‍लियर मेडीसिन के फिजीशियन डॉ. मनीष पंडित ने किया तो उनकी जिज्ञासा हुई कि क्‍यों न तारामंडल संबंधी सॉफ्‍टवेयर की मदद से डॉ. अचर के निष्‍कर्षों की पड़ताल व सत्‍यापन किया जाए। घटनाओं की कालगणना करने के दौरान वे उस समय आश्‍चर्यचकित रह गए जब उन्‍होंने डॉ. अचर के शोध-पत्र और तारामंडलीय सॉफ्‍टवेयर से सामने आए निष्‍कर्ष में अद्‌भुत समानता पाई।
इस अध्‍ययन के अनुसार कृष्‍ण का जन्‍म ईसा पूर्व 3112 में हुआ। विश्‍व प्रसिद्ध कौरव व पाण्‍डवों के बीच लड़ा गया महाभारत युद्ध ईसा पूर्व 3067 में हुआ। इन काल-गणनाओं के आधार पर महाभारत युद्ध के समय कृष्‍ण की उम्र 54-55 साल की थी। महाभारत में 140 से अधिक खगोलीय घटनाओं का विवरण है। इसी आधार पर डॉ. नरहरि अचर ने पता लगाया कि महाभारत युद्ध के समय आकाश कैसा था और उस दौरान कौन-कौन सी खगोलीय घटनाएं घटी थीं। जब इन दोनों अध्‍ययनों के तुलनात्‍मक निष्‍कर्ष निकाले गए तो पता चला कि महाभारत युद्ध ईसा पूर्व 22 नवंबर 3167 को शुरु होकर 17 दिन चला था। इन अध्‍ययनों से निर्धारित होता है कि कृष्‍ण कोई अलौकिक या दैवीय शक्‍ति न होकर एक मानवीय पौरुषीय शक्‍ति थे। डॉ. मनीष पंडित इस अध्‍ययन से इतने प्रभावित हुए कि उन्‍होंने ‘कृष्‍ण इतिहास और मिथक' नाम से एक दस्‍तावेजी फिल्‍म भी बना डाली।
इन तथ्‍यपरक अध्‍ययनों के सामने आने के बाद अब जरुरी हो जाता है कि हम अपनी उस मानसिकता को बदलें, जिसके चलते हमने प्राचीन भारतीय इतिहास, पुरातत्‍व और साहित्‍य के प्रति तो सख्‍त रवैया अपनाया हुआ है और औपनिवेशिक पाश्‍चात्‍य संप्रभुता के प्रति दास वृत्ति के अंदाज में कमोवेश लचीला रुख अपनाया हुआ है। अंग्रेज व उनके निष्‍ठावान अनुयायी भारतीय बौद्धिकों ने आर्य-अनार्य, आर्य-दस्‍यु और आर्य द्रविड़ समस्‍याएं खड़ी करके यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि भारत आदिकाल से ही विदेशी जातियों का उपनिवेश रहा है। इस बात से वे यह भी सिद्ध करना चाहते थे कि भारत पर ब्रितानी साम्राज्‍य का आधिपत्‍य सर्वथा वैद्य होते हुए न्‍यायसंगत था। लेकिन अब समय आ गया है कि इस मानसिक जड़ता को बदला जाए। यदि धर्म, भाषा, जाति और सांप्रदायिक सोच से ऊपर उठकर हम अपनी दृष्‍टि में साक्ष्‍य आधारित परिवर्तन कालांतर में लाते हैं तो देश असभ्‍यता व अज्ञानता के हीनता-बोध से तो उबरेगा ही हमारे ऐतिहासिक, सांस्‍कृतिक व सामाजिक मूल्‍यों में भी क्रांतिकारी बदलाव आएगा।
-------------------

प्रस्तुतकर्ता Divya Narmada पर 7:57 pm कोई टिप्पणी नहीं:
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