चित्र-चित्र क्षणिका :
पूर्णिमा बर्मन
पूर्णिमा जी समकालिक हस्ताक्षरों में महत्वपूर्ण स्थान की अधिकारिणी हैं अपने रचना कर्म और हिंदी प्रसार दोनों के लिए. उनके पृष्ठ से साभार प्रस्तुत हैं कुछ क्षणिकाएँ>
इस अकेली शाम का
मतलब न पूछो
सर्द मौसम
और फैला दूर तक
एकांत सागर
एक पुल
थामे हुए हमको हमेशा
-
पूर्णिमा बर्मन
पूर्णिमा जी समकालिक हस्ताक्षरों में महत्वपूर्ण स्थान की अधिकारिणी हैं अपने रचना कर्म और हिंदी प्रसार दोनों के लिए. उनके पृष्ठ से साभार प्रस्तुत हैं कुछ क्षणिकाएँ>
इस अकेली शाम का
मतलब न पूछो
सर्द मौसम
और फैला दूर तक
एकांत सागर
एक पुल
थामे हुए हमको हमेशा
-
बदला मौसम गर्म हवाएँ
फागुन बीता जाए
दोपहरी की
सुस्ती हल्की
बार बार दुलराए
फागुन बीता जाए
दोपहरी की
सुस्ती हल्की
बार बार दुलराए
*
फिर वही वेवक्त बारिश
रात गहरी
नम फुहारें
भीगती सड़कें
हवा के सर्द झोंके
रुकें...
रुक रुक के पुकारें -
रात गहरी
नम फुहारें
भीगती सड़कें
हवा के सर्द झोंके
रुकें...
रुक रुक के पुकारें -
*
खिड़कियों के पार
उजला फागुनी मौसम
गर्म दोपहरी
नींद का झोंका
गुनगुना की-बोर्ड,
फिर से
काम की चोरी
उजला फागुनी मौसम
गर्म दोपहरी
नींद का झोंका
गुनगुना की-बोर्ड,
फिर से
काम की चोरी
*
दौड़ना हर रोज
नंगे पाँव सागर के किनारे
आसमानों से गुजरना
पानियों पर नजर रखना
एक पूरा जनम जैसे
रोज जीना
नंगे पाँव सागर के किनारे
आसमानों से गुजरना
पानियों पर नजर रखना
एक पूरा जनम जैसे
रोज जीना
*
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