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बुधवार, 23 अप्रैल 2014

chhand salila: manjutilka chhand -sanjiv

छंद सलिला:
मंजुतिलका छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महादैशिक , प्रति चरण मात्रा २० मात्रा, चरणांत लघु गुरु लघु (जगण)।

लक्षण छंद:

मंजुतिलका छंद रचिए हों न भ्रांत
बीस मात्री हर चरण हो दिव्यकांत
जगण से चरणान्त कर रच 'सलिल' छंद
सत्य ही द्युतिमान होता है न मंद
लक्ष्य पाता विराट

उदाहरण:
१. कण-कण से विराट बनी है यह सृष्टि
   हरि की हर एक के प्रति है सम दृष्टि
   जो बोया सो काटो है सत्य धर्म
   जो लाए सो ले जाओ समझ मर्म
 
२. गरल पी है शांत, पार्वती संग कांत 
    अधर पर मुस्कान, सुनें कलरव गान
    शीश सोहे गंग, विनत हुए अनंग
    धन्य करें शशीश, विनत हैं जगदीश
    आम आये बौर, हुए हर्षित गौर
    फले कदली घौर, मिला शुभ को ठौर
    अमियधर को चूम, रहा विषधर झूम
    नर्मदा तट ठाँव, अमरकंटी छाँव
    उमाघाट प्रवास, गुप्त ईश्वर हास
    पूर्ण करते आस, न हो मंद प्रयास
   
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(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दीपकी, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हेमंत, हंसगति, हंसी)
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in

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