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रविवार, 20 अप्रैल 2014

chhand salila: hemant chhand -sanjiv



छंद सलिला:

हेमंत छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महादैशिक , प्रति चरण मात्रा २० मात्रा, चरणांत गुरु लघु गुरु (रगण), यति बंधन नहीं।

लक्षण छंद:
बीस-बीस दिनों सूर्य दिख नहीं रहा
बदन कँपे गुरु लघु गुरु दिख नहीं रहा
यति भाये गति मन को लग रही सजा
ओढ़ ली रजाई तो आ गया मजा

उदाहरण:
१. रंग से रँग रही झूमकर होलिका
   छिप रही गुटककर भांग की गोलिका
   आयी ऐसी हँसी रुकती ही नहीं
   कौन कैसे कहे क्या गलत, क्या सही?
 
२. देख ऋतुराज को आम बौरा गया
    रूठ गौरा गयीं काल बौरा गया
    काम निष्काम का काम कैसे करे?
    प्रीत को यादकर भीत दौरा गया

 ३.नाद अनहद हुआ, घोर रव था भरा
    ध्वनि तरंगों से बना कण था खरा
    कण से कण मिल नये कण बन छा गये
    भार-द्रव्यमान पा नव कथा गा गये
    सृष्टि रचना हुई, काल-दिशाएँ बनीं
    एक डमरू बजा, एक बाँसुरी बजी
    नभ-धरा मध्य थी वायु सनसनाती
    सूर्य-चंदा सजे, चाँदनी लुभाती
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(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हेमंत, हंसगति, हंसी)
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in

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