चित्र पर कविता:
संजीव
रिश्तों पे जमीं बर्फ रास आ रही है खूब
गर्मी दिलों की आदमी से जा रही है ऊब
रस्मी बराए-नाम हुई राम-राम अब-
काम-काम सांस जपे जा रही है अब
कुदरत भी परेशान कि जीना मुहाल है
आदमी की आदमीयत पर सवाल है
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