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शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

chhand salila; kamini mohan / madan avtar chhand -sanjiv

छंद सलिला:
कामिनीमोहन (मदनअवतार) छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महादैशिक , प्रति चरण मात्रा २० मात्रा तथा चार पंचकल, यति५-१५.

लक्षण छंद:
कामिनी, मोहिनी मानिनी भामनी 
फागुनी, रसमयी सुरमयी सावनी
पाँच पंद्रह रखें यति मिले गति 'सलिल'
चार पँचकल कहें मत रुको हो शिथिल

उदाहरण:
१. राम को नित्य भज भूल मत बावरे
   कर्मकर धर्म वर हों सदय सांवरे    
   कौन है जो नहीं चाहता हो अमर
   पानकर हलाहल शिव सदृश हो निडर

२. देश पर जान दे सिपाही हो अमर
    देश की जान लें सेठ -नेता अगर
    देश का खून लें चूस अफसर- समर 
    देश का नागरिक प्राण-प्राण से करे 
    देश से सच 'सलिल' कवि कहे बिन डरे 
    देश के मान हित जान दे जन तरे

३. खेल है ज़िंदगी खेलना है हमें
    मेल है ज़िंदगी झेलना है हमें
    रो नहीं हँस सदा धूप में, छाँव में
    मंज़िलें लें शरण, आ 'सलिल' पाँव में
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(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसगति, हंसी)

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