सामयिक दोहे
संजीव
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इनके पंजे में कमल, उनका भगवा हाथ
इनके पंजे में कमल, उनका भगवा हाथ
आम आदमी देखकर, नत दोनों का माथ
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'राज्य बनाया है' कहो या 'तोडा है राज्य'
तोड़ रही है सियासत, कैसे हों अविभाज्य?
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भाग्य विधाता आम है, शोषण करता ख़ास
जो खासों का साथ दे, उसको मानो दास
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साथ आम का दो सलिल, उस पर कर विश्वास
साथ ख़ास के जो रहा, वह भोगे संत्रास
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ख़ास हुआ है वह 'सलिल', जिसे न भाये आम
बेच रहा ईमान निज, जो निश-दिन ले दाम
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एक द्विपदी:
मिलाकर हाथ खासों ने, किया है आम को बाहर
नहीं लेना न देना ख़ास से, हम आम इन्सां हैं
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नहीं लेना न देना ख़ास से, हम आम इन्सां हैं
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