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मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

doha salila: samyik dohe -sanjiv



सामयिक दोहे
संजीव
*
इनके पंजे में कमल, उनका भगवा हाथ
आम आदमी देखकर, नत दोनों का माथ
*
'राज्य बनाया है' कहो या 'तोडा है राज्य'
तोड़ रही है सियासत, कैसे हों अविभाज्य?
*
भाग्य विधाता आम है, शोषण करता ख़ास
जो खासों का साथ दे, उसको मानो दास
*
साथ आम का दो सलिल, उस पर कर विश्वास
साथ  ख़ास के जो रहा, वह भोगे संत्रास 
*
ख़ास हुआ है वह 'सलिल', जिसे न  भाये आम 
बेच रहा ईमान निज, जो निश-दिन ले दाम 
*
एक द्विपदी:
मिलाकर हाथ खासों ने, किया है आम को बाहर
नहीं लेना न देना ख़ास से, हम आम इन्सां हैं
*

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