छंद सलिला
गंग छंद
संजीव
*
लक्षण: जाति आंक, पद २, चरण ४, प्रति चरण मात्रा ९, चरणान्त गुरु गुरु गंग छंद
संजीव
*
लक्षण छंद:
नयना मिलाओ, हो पूर्ण जाओ,
दो-चार-नौ की धारा बहाओ
लघु लघु मिलाओ, गुरु-गुरु बनाओ
आलस भुलाओ, गंगा नहाओ
उदाहरण:
१. हे गंग माता! भव-मुक्ति दाता
हर दुःख हमारे, जीवन सँवारो
संसार की दो खुशियाँ हजारों
उतर आस्मां से आओ सितारों
ज़न्नत ज़मीं पे नभ से उतारो
हे कष्टत्राता!, हे गंग माता!!
२. दिन-रात जागो, सीमा बचाओ
अरि घात में है, मिलकर भगाओ
तोपें चलाओ, बम भी गिराओ
सेना अकेली न हो सँग आओ
आलस भुलाओ, गंगा नहाओ
उदाहरण:
१. हे गंग माता! भव-मुक्ति दाता
हर दुःख हमारे, जीवन सँवारो
संसार की दो खुशियाँ हजारों
उतर आस्मां से आओ सितारों
ज़न्नत ज़मीं पे नभ से उतारो
हे कष्टत्राता!, हे गंग माता!!
२. दिन-रात जागो, सीमा बचाओ
अरि घात में है, मिलकर भगाओ
तोपें चलाओ, बम भी गिराओ
सेना अकेली न हो सँग आओ
३. बचपन हमेशा चाहे कहानी
हँसकर सुनाये अपनी जुबानी
सपना सजायें, अपना बनायें
हो ज़िंदगानी कैसे सुहानी?
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा,
उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप,
दोधक, नित, निधि, प्रदोष, प्रेमा, बाला, मधुभार, मनहरण घनाक्षरी, माया, माला, ऋद्धि, रामा, लीला,
वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान,
हंसी)
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