मुक्तिका:
खुली आँख सपने…
संजीव
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खुली आँख सपने बुने जा रहे हैं
खुली आँख सपने…
संजीव
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खुली आँख सपने बुने जा रहे हैं
कहते खुदी खुद सुने जा रहे हैं
वतन की जिन्हें फ़िक्र बिलकुल नहीं है
संसद में वे ही चुने जा रहे हैं
दलतंत्र मलतंत्र है आजकल क्यों?
जनता को दल ही धुने जा रहे हैं
बजा बीन भैसों के सम्मुख मगन हो
खुश है कि कुछ तो सुने जा रहे हैं
निजी स्वार्थ ही साध्य सबका हुआ है
कमाने के गुर मिल गुने जा रहे हैं
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
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