पूज्या माँ वरिष्ठ कवयित्री शान्ति देवी वर्मा
संजीव वर्मा 'सलिल'
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मेरी माँ वरिष्ठ कवयित्री व लेखिका श्रीमती शान्ति देवी वर्मा का ८६ वर्ष की आयु में २४-११-२००८ को २०. ५ बजे २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर में निधन हुआ. मेरे जीवन में उनकी भूमिका हवा की तरह थी, हर पल उपस्थित किन्तु उपस्थिति की अनुभूति तक न होने देती थीं. वे मेरी ही नहीं समूचे खानदान की चेतना थीं. पारिवारिक विवादों और पारस्परिक कटुआ उनकी उपस्थिति और देती थी. तत्काल न समझ पाने पर उन्हें सबकी आलोचना सहनी होती किन्तु वे अडिग रहतीं, अंततः सही सिद्ध होतीं और फिर उसका श्रेय अन्यों को दे देतीं।
मेरी माँ वरिष्ठ कवयित्री व लेखिका श्रीमती शान्ति देवी वर्मा का ८६ वर्ष की आयु में २४-११-२००८ को २०. ५ बजे २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर में निधन हुआ. मेरे जीवन में उनकी भूमिका हवा की तरह थी, हर पल उपस्थित किन्तु उपस्थिति की अनुभूति तक न होने देती थीं. वे मेरी ही नहीं समूचे खानदान की चेतना थीं. पारिवारिक विवादों और पारस्परिक कटुआ उनकी उपस्थिति और देती थी. तत्काल न समझ पाने पर उन्हें सबकी आलोचना सहनी होती किन्तु वे अडिग रहतीं, अंततः सही सिद्ध होतीं और फिर उसका श्रेय अन्यों को दे देतीं।
बापू के नेतृत्व में स्वंतंत्रता
सत्याग्रही बनने के लिये ऑनरेरी मजिस्ट्रेट पद से त्यागपत्र देकर विदेशी
वस्त्रों की होली जलानेवाले रायबहादुर माताप्रसाद सिन्हा 'रईस' मैनपुरी
उत्तर प्रदेश की ज्येष्ठ पुत्री शान्ति देवी का जन्म १८-१०-१९२३ को नगीना में हुआ था. पिता लाड से उन्हें 'हीरा' कहते तो दादी 'पूता'. उनका जन्म पिता के जीवन में व्यापक परिवर्तन लाया। वे यश और कीर्ति के शिखर पर पहुँचे। बिटिया को उस ज़माने में अंग्रेजी शिक्षा के साथ हिंदी उर्दू, नृत्य-संगीत की शिक्षा हेतु घर में ही शिक्षण व्यव्स्था की. कम्पिल, फर्रुखाबाद के जागीरदार जुगल किशोर के ३ पुत्र अम्बिका सहाय, कालीसहाय तथा बालसहाय हुए. अम्बिका सहाय के ज्येष्ठ पुत्र माताप्रसाद व माया देवी की पुत्र शांति देवी बहुमुखी प्रतिभा की धनी थीं. जागीरदारी के भूमि विवाद में अम्बिका सहाय के हाथो गोली चालन से एक ब्राम्हण की मौत ने शायद इस परिवार को अभिशप्त कर दिया।
राजा इन्दर बहादुर तथा उनकी पत्नी सुन्दर देवी के माध्यम से उनका वर्ष १९३९ में विवाह जबलपुर मध्य प्रदेश
के स्वतंत्रता सत्याग्रही स्व. ज्वाला प्रसाद वर्मा के छोटे भाई श्री
राजबहादुर वर्मा सेवा निवृत्त जेल अधीक्षक से हुआ था। दुर्योग से विवाह के बाद शीघ्र ही माताप्रसाद जी का शीघ्र ही निधन हो गया. समृद्धि के शिखर ढह गये. सम्बन्धियों ने अल्प शिक्षित स्त्रियों से कागजातों पर हस्ताक्षर कराकर धन, संपत्ति खुर्द-बुर्द करने में विलम्ब न किया. द्वितीय पुत्री आशा (मुन्नी) का विवाह दिल्ली के प्रतिष्ठित लाल घराने में बिपिन बिहारी लाल के साथ संपन्न होने के बाद स्थिति यहाँ तक आ गयी कि खाने के लाले पड़ने लगे. स्त्रियों ने आभूषण और बर्तन बेचकर कुछ निष्ठावान सेवकों के जरिये काम चलाया। लम्बे समय तक चली इस विपन्नता को दादी, सौतेली माँ, दो बहनें कमलेश (कम्मो), राजेश (रज्जो) तथा सबसे छोटे भाई हरीश ने झेला और अपने पराये होते गए. हरीश ने मैट्रिक तक पढ़कर जायदाद के मुकदमे किये, व्यवसाय बढ़ाया किन्तु उनके मित्रों विजय और स्वराज के विश्वासघाती षड्यंत्र का फल विवाह के तीसरे दिन (१५-५-१९७१) उनकी मौत के रूप में सामने आया. नवोढ़ा को उसके दहेज-चढ़ावे और संपत्ति सहित उसके पिता ले गए और पुनर्विवाह कर दिया।
पति की सख्त, कम वेतन और निरंतर स्थानांतरणवाली नौकरी के साथ अपने श्वसुरालय के बड़े खानदान के दायित्वों ने शांति देवी को जकड़ दिया। उनकी दोनों जेठानियों के निधन के कारण उनके बच्चों को प्रायः साथ रखने' हर सुख-दुःख में सम्मिलित होने तथा विवाहों में अपनी सामर्थ्य से अधिक खर्च कर हर कर्तव्य निभाने ने उन्हें बड़ों का शीश तथा छोटों के सम्मान दिलाया किन्तु मायके पक्ष की आर्थिक मदद वे कभी नहीं कर सकीं और यह मलाल उन्हें हमेशा रहा. समय की बलिहारी कि दोनों जेठों ने जमीन के मोह में अपने छोटे भाई से आजीवन केस लड़े. माँ फिर भी उनके बच्चों को स्नेह-प्यार देती रहीं। माँ ने हम भाई-बहनों को शैशव से ही पारिवारिक विवादों से दूर रहने और स्वावलम्बी बनने का पाठ पढ़ाया।
उनके प्रोत्साहन के कारण ही उनकी चारों बेटियाँ और दोनों बेटे पढ़-लिखकर व्यवस्थित हो पाए. साहित्य, समाज और धर्म के प्रति अनुराग और स्वाभिमान तथा निरासक्ति सभी बच्चों को विरासत में मिला।
साहित्यिक संस्था
'अभियान' जबलपुर, के माध्यम से रचनाकारों हेतु दिव्य नर्मदा अलंकरण, दिव्य नर्मदा
पत्रिका तथा समन्वय प्रकाशन की स्थापना कर नगर की साहित्यिक चेतना को गति
देने में उन्होंने महती भूमिका निभायी। अपने पुत्र संजीव वर्मा 'सलिल',
पुत्री आशा वर्मा तथा पुत्रवधू डॉ. साधना वर्मा को साहित्यिक रचनाकर्म तथा
समाज व् पर्यावरण सुधार के कार्यक्रमों के माध्यम से सतत समर्पित रहने की
प्रेरणा उनहोंने दी। उनके निधन के साथ इतिहास का एक अध्याय समाप्त हो गया। उनके रचे हुए भक्ति गीत उनकी विरासत के रूप में हमें प्राप्त हैं.
बहुत सुन्दर, सलील जी. बधाई स्वीकारें.
जवाब देंहटाएंसादर,
संपत.
sampat ki shubh kamna, karti sampatvaan 'salil' dhanya asheesh paa, aaj huaa dhanwan
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