नवगीत:
जब तक कुर्सी....
संजीव
*
जब तक कुर्सी, तब तक ठाठ...
*
नाच जमूरा, नचा मदारी.
सत्ता भोग, करा बेगारी.
कोई किसी का सगा नहीं है.
स्वार्थ साधने करते यारी.
फूँको नैतिकता ले काठ.
जब तक कुर्सी, तब तक ठाठ...
*
बेच-खरीदो रोज देश को.
साध्य मान लो लोभ-ऐश को.
वादों का क्या?, किया-भुलाया.
लूट-दबाओ स्वर्ण-कैश को.
झूठ आचरण सच का पाठ.
जब तक कुर्सी, तब तक ठाठ...
*
मन पर तन ने राज किया है.
बिजली गायब बुझा दिया है.
सच्चाई को छिपा रहे हैं.
भाई-चारा निभा रहे हैं.
सोलह कहो भले हो साठ.
जब तक कुर्सी, तब तक ठाठ...
*
जब तक कुर्सी....
![[14.jpg]](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiydOhwq3wJqNllZi6cHinEwPYprOA6RMUpJBLjHdr8OJPH2wRvxJOl1diKusX0UjSso5m-kxLpzEUonwTfrES74H54nPi4gLs0OjW7f_LbQJ_2GCzWC7OFnKca-rEwr1dQ4pnxDkY79lU/s200/14.jpg)
संजीव
*
जब तक कुर्सी, तब तक ठाठ...
*
नाच जमूरा, नचा मदारी.
सत्ता भोग, करा बेगारी.
कोई किसी का सगा नहीं है.
स्वार्थ साधने करते यारी.
फूँको नैतिकता ले काठ.
जब तक कुर्सी, तब तक ठाठ...
*
बेच-खरीदो रोज देश को.
साध्य मान लो लोभ-ऐश को.
वादों का क्या?, किया-भुलाया.
लूट-दबाओ स्वर्ण-कैश को.
झूठ आचरण सच का पाठ.
जब तक कुर्सी, तब तक ठाठ...
*
मन पर तन ने राज किया है.
बिजली गायब बुझा दिया है.
सच्चाई को छिपा रहे हैं.
भाई-चारा निभा रहे हैं.
सोलह कहो भले हो साठ.
जब तक कुर्सी, तब तक ठाठ...
*
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